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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी . दोषों को निराकरण करने का कारण होने से उत्कृष्ट, जीवों की विराधना से उत्पन्न हुए दोषों को दूर करने वाला और जीवों की विराधना से उपार्जन किये हुये दुष्कृत्यों से शुद्ध करने वाला ऐसा नमस्कार करूँ तब तक जिससे पाप का उपार्जन होता है, जिससे दुराचार सेवन किये जाते हैं ऐसे काय का त्याग करता हूं अर्थात तब तक इससे ममत्वभाव छोड़ता हूँ। इस तरह प्रतिक्रमण पढ़ कर "णमो अरहंताणं" इत्यादि गाथा का सत्ताईस उच्छासों में नौ वार खड़े खड़े जाप्य देवें । अनन्तर पर्यकासन बैठ कर नीचे लिखा "आलोचना-पाठ" पढ़ें। श्रालोचनाईर्यापथे प्रचलिताद्य मया प्रमादादेकेन्द्रियप्रमुखजीवनिकायबाधा । निवर्तिता यदि भवेदयुगान्तरेक्षा मिथ्या तदस्तु दुरितं गुरुभक्तितो मे ॥१॥ इच्छामि भते ! आलोचेउं इरियावहियस्स पुव्वुत्तरदक्षिणपच्छिमचउदिसविदिसासु विरहमाणेण जुगंतरदिहिणा भग्वेण दहव्वा । पमाददोषेण डवडवचरियाए पाणभूदजीवसत्ताणं उवघादो कदो वा कारिदो वा कीरंतो वा समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं। ईर्यामार्ग में चलते हुए मैंने यदि प्रमाद से आज युग-चार हाथ प्रमाण भूमि न देख कर एकेन्द्रिय आदि जीव निकाय को पीड़ा पहुँचाई हो तो मेरा यह दुरित-पापाचरण गुरु भक्ति द्वारा मिथ्या हो ।। हे भगवन् ! ईर्यापथ सम्बन्धी प्रमाद-दोष की निन्दा और गर्दा रूप आलोचना करने की इच्छा करता हूँ। पूर्व, उत्तर, दक्षिण और पश्चिम इन चार दिशाओं में वायव्य, ईशान, नैऋत और आग्नेय इन For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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