________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१४
www.kobatirth.org
क्रियाकलापै
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'अथ कृत्य विज्ञापना -
भगवन्नमोऽस्तु प्रसीदंतु प्रभुपादा वंदिष्येऽहं एषोऽहं सर्वसावद्ययोगाद्विरतोऽस्मि ।
भगवान् ! नमस्कार हो, प्रभुपाद प्रसन्न होवें मैं वन्दना करूँगा, यह मैं सर्व सावद्ययोग से विरक्त होता हूँ । अनन्तर नीचे लिखा क्रिया विज्ञापन करें।
अथ पौर्वाह्निकं पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावन्दनास्तवसमेतं चैत्यभक्तिकायोत्सर्ग करोमि ।
अब प्रातः काल सम्बन्धी पूर्वाचार्यों के अनुक्रम से सम्पूर्ण कर्मों के क्षय के लिए भाव पूजा, वन्दना और स्तव सहित चैत्यभक्ति और तत्सम्बन्धी कायोत्सर्ग करता हूँ । ( यह प्रथम वार बैठना है )
इस तरह कृत्यविज्ञापना कर 'खड़े हो कर भूमि-स्पर्शनात्मक पंचांग नमस्कार करें पश्चात् जिनप्रतिमा के सन्मुख चार अंगुल प्रमाण दोनों पैरों का अन्तर कर खड़े होवें । तीन आवर्त और एक शिरोनमन करें । पश्चात् मुक्ता- शुक्ति मुद्रा जोड़ कर नीचे लिखा समायिक दण्डक पढ़ें। पहले उच्लास में अर्हत- सिद्ध मंत्र का, दूसरे में आचार्य - उपाध्याय मन्त्र का और तीसरे में सर्व साधु मन्त्र का स्वश्रवणगोचर जिसे दूसरा न सुन सके इस तरह एक वार उच्चारण कर पश्चात् चत्तारि - दण्डक स्तोत्र को समीपस्थ मनुष्य के कानों को मनोहर मालूम पड़े ऐसी सुरीली आवाज से पढ़ें । तद्यथा
१.....
'विज्ञाप्य क्रिया
२
'मुत्थाय विग्रहं । प्रह्वीकृत्य, त्रिभ्रमैकशिरोवनतिपूर्वकम् ||४|| मुक्ताशुभ्यंकितकरः पठित्वा साम्यदण्डकम् ।
For Private And Personal Use Only