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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी। देववन्दना प्रयोगानुपूर्वी। ना देववन्दना के लिए श्रीजिनमन्दिर को जावें, वहाँ उचित स्थान में बैठकर दोनों हाथों और दोनों परों को धोवें । अनन्तर "निसही निसही निसही" - ऐसा तीन वार उच्चारण कर चैत्यालय में प्रवेश करें वहां जिनेन्द्रदेव के मुख का अवलोकन कर तीन वार प्रणाम करें। अनन्तर "दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि" इत्यादि दर्शन-स्तोत्र को वन्दना मुद्रा जाड़ कर पढ़ते हुए चैत्यालय की तीन प्रदक्षिणा देवें। प्रत्येक दिशा में तीन तीन आवर्त और एक एक शिरोनति करते जावे । अनन्तर खड़ा रह कर, दोनों पैरों को समान कर, चार अंगुल का अन्तर रख कर और दोनों हाथों को मुकुलित कर नीचे लिखा "ऐपिथिक दोषविशुद्धिपाठ” पढ़ें। ईर्यापथविशुद्धिःपडिकमामि भंते ! इरियावहियाए विराहणाए अणागुत्ते, अहगमणे, निग्गमणे, ठाणे, गणे, चंकमणे, पाणुग्गमणे, बीजु१-श्रुतदृष्टयात्मनि स्तुत्यं पश्यन् गत्वा जिनालयम् । कृतद्रव्यादिशुद्धिस्तं प्रविश्य निसहीगिरा ।। १ ।। चैत्यालोकोद्यदानन्दगलद्वाष्पत्रिरानतः। परीत्य दर्शनस्तोत्रं वन्दनामुद्रया पठन् ॥२॥ २-कृत्वेर्यापथसंशुद्धि"...।। ३–प्रतिक्रम्य पृथग्गाथां द्विद्वयेकाशान्तरेचकाम् । .. नव कृत्वः स्थितो जप्त्वा निषद्यालोचयाम्यहम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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