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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तथा क्रियाकलापे career प्रयोग विधि | २२ त्रिसन्ध्यं वन्दने युञ्ज्या चैत्यपंचगुरुस्तुती । प्रियभक्ति बृहद्भक्तिष्वन्ते दोषविशुद्धये ||१| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिणदेववन्दणाए चेदियभत्ती य पश्चगुरुभत्ती ॥ ३ ॥ ऊनाधिक्यविशुद्धयर्थं सर्वत्र प्रियभक्तिका ॥ ३॥ तीनों सन्ध्या सम्बन्धी जिनवन्दना में चैत्य-भक्ति और पागुरुभक्ति तथा सभी बृहद्भक्तियों के अन्त में वन्दनापाठ की हीनधिकाता रूप दोषों की विशुद्धि के लिए प्रियभक्ति-समाधिभक्ति करना चाहिए । इस देववन्दना में छह प्रकार का कृतिकर्म भी होता है । यथास्वाधीनता परीतिस्त्रयी निषद्या त्रिवारमावर्ताः । द्वादश चत्वारि शिरांस्येवं कृतिकर्म षोढेष्टम् ॥२॥ तथा आदाहीणं, पदाहिणं, तिक्खुतं, तिऊणदं, चदुस्सिरं वारसाव, चेदि । (१) वन्दना करने वाले की स्वाधीनता, (२) तीन प्रदक्षिणा, (३) तीन भक्ति सम्बन्धी तीन कायोत्सर्ग (४) तीन निषया-ईर्यापथ कायोत्सर्ग के अनन्तर बैठ कर आलोचना करना और चैत्य भक्ति सम्बन्धी क्रिया विज्ञापन करना १, चैत्यभक्ति के अन्त में बैठकर आलोचना करना और पञ्चमहागुरुभक्ति सम्बन्धी क्रिया विज्ञापन करना २, पञ्चमहागुरुभक्ति के में बैठकर आलोचना करना, (५) चार शिरोनति, (६) और बारह आवर्त । यही सब आगे बताया गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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