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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( =) । इससे भी यही साबित होता है कि वन्दना में दो ही भक्ति होती हैं । अतएव हमने उक्त सब आगमों के अनुसार वन्दना में दो ही भक्तियां रक्खी हैं और उन्हीं के अनुसार प्रयोगानुपूर्वी लिखी है। पं० आशाधरजी के समय कुछ सुविहिताचार मुनि और श्रावक सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शान्तिभक्ति इन चार भक्तियों द्वारा भी देववन्दना करते थे परन्तु उसको उनने ठीक नहीं माना है । वे लिखते हैं अपि च यत्पुनर्वृद्ध परंपराव्यवहारोपलंभात् सिद्धचैत्यपंचगुरुशांतिभक्तिभिर्यथावसरं भगवन्तं वन्दमानाः सुविहिताचारा अपि दृश्यते तत्केवलं भक्तिपिशाचिदुर्ललितमिव मन्यामहे सूत्रातिवर्तनात् । सूत्रे हि पूजाभिषेक-मंगल एव तच्चतुष्टयमिष्टं । तथा चोक्तम्चैत्यपश्च गुरुस्तुत्या नित्या सन्ध्यासु वन्दना । सिद्धभक्त्यादिशान्त्यन्ता पूजाभिषवमंगले ॥१॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा - जिणदेवनंदणाए चेदियभत्ती य पञ्च गुरुभत्ती । अहियवंदणा सिद्ध- वेदिय पंचगुरु-संतिभत्तीहिं । - अनगारधर्मामृत इन सब प्रमाणों से ज्ञात होता है कि ऊपर बताये गये संगृहीत सामायिक पाठ का क्रम आगम के अनुकूल तो नहीं है परन्तु अशुभ भावों का उत्पादक भी नहीं है अतः कोई सुविहिताचार उसके अनुसार भी देववंदना करे तो हानि नहीं है। हां, आगम विधान का उल्लंघन अवश्य होता है । वर्तमान के सुविहिताचार उक्त सब विधानों से भी विपरीत त्रिकोल सामायिक या त्रिकालदेववन्दना करते हुए देखे जाते हैं । वे चारों दिशाओं में चार कायोत्सर्ग कर और आँखें मीच कर बैठ जाते हैं। और मध्याह्न वन्दना भी आहारोपरान्त करते हैं । संभवतः आगमोक्त For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
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