SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मवेति जिनगेहादि त्रिःपरीत्य कृताञ्जलिः । . प्रकुर्वस्तच्चतुर्दिक्षु सत्र्यावर्ती शिरोनतिम् ॥ घोरसंसारगंभीरवारिराशौ निमजताम् । दत्तहस्तावलंबस्य जिनस्यार्चार्थमाविशेत् ।। + + + ईर्यागःशुद्धथै व्युत्सर्ग कृत्वासीनोऽनुकम्पया । आलोच्य समतां वों कुर्यादात्मेच्छयान्यदा ॥ + + + क्रियायामस्यां व्युत्सर्ग भक्तेरस्याः करोम्यहम् । विज्ञाप्येति समुत्थाय गुरुस्तवनपूर्वकम् ॥ कृत्वा करसरोजातमुकुलालंकृतं निजम् । भाललीलासरः कुर्यात् त्र्यावर्ता शिरसो नतिम् ॥ आद्यस्य दंडकस्यादौ मंगलादेरयं क्रमः। तदन्तेऽप्यङ्गव्युत्सर्गः कार्योऽतस्तदनन्तरम् ।। कुर्यात्तथैव थोस्सामीत्याद्यार्यावन्तयोरपि । इत्यस्मिन् द्वादशावर्ता शिरोनतिचतुष्टयम् ॥ देवतास्तवने भक्ती चैत्यपंचगुरुभयोः । -आचारसार। मूलाचार में भी 'चत्तारि पडिकमणे' इस गाथा की टीका में भगवद्वसुनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्ती वन्दना में दो कृतिकर्म लिखते हैं। वे कहते हैं-'सामायिकस्तवपूर्वककायोत्सर्गः चतुर्विंशतितीर्थकरस्तवपर्यंतः कृतिकर्मत्युच्यते' ऐसे कृतिकर्म "...."प्रतिक्रमणे क्रियाकर्माणि चत्वारि स्वाध्याये त्रीणि वन्दनायां द्वे' प्रतिक्रमण में चार, स्वाध्याय में तीन और वन्दना में दो होते हैं। क्योंकि वन्दना में चैत्य. भक्ति और पंचगुरुभक्ति दो होती हैं। दोनों के दो उक्त कृतिकर्म होते For Private And Personal Use Only
SR No.090257
Book TitleKriya Kalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Shastri
PublisherPannalal Shastri
Publication Year1993
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy