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वचन - कोश
वृक्ष अनूप प्रति श्रीखंड | तहां तपु ले दियो इन्द्रित दंग ।। दिन समस्त गत समय भयो । राजनीति तजि केवल यो ॥ ५ ॥ की रहन्पो ॥ गिरिसम्मेद चढि त्रिपुर गए। ठाढे जोग जिनेश्वर लये ।। ६ ।।
दोहा
भादों सुदि ऋद्धि गर्म दिन, जनम जेठ शुदि बार
तप फागुरा बदि सप्तमी, को पंथ निरधार ॥ ७ ॥ ज्ञान जेठ यदि द्वंीज को, समासरण मंडान | फागुण बदि षष्टी कमी, श्री जिनवर निर्वाण ।। ८ ।। इति पश्वंजिन वर्णनं
८. चन्द्रप्रभ स्तवन
सोरठा
सागर मोसे कोटि, जब संपूरण
गए ।
शिवत माभा कोटि, चन्द्रप्रभ जिन जनमियों ॥। १॥
५.१
I
चौपई चन्द्रपुरी राजा महासेनि । लक्षमा राणी तागृह चैनि चन्द्र चिह्न दुतीया को भांति । हिमकर बरत देही की शांति ॥ २ ॥ दश लाख पूरख श्राव गनंत घनक देवसे काय दिपन्त | तिमिर नसायों कुल इशाक | सात भवांतरस्यों नेराग ॥ ३ ॥ नवं तीनि संग गणधार | दूजे दिन लियो दूध आहार | पद्मखंड नगरी को ईश चन्द्रदत दियो दान अधीश ॥ ४॥ तरबर नाग नाम सोमंत । तालर तप लियो प्ररहंत ॥ तीन लोक को साध्यौ राज । कियो निज श्रातम काज ॥ ५ ॥ दिन की श्रादि पंचमग्यांन। गिरिसमेद धानक निर्याण 11 समोसर जोजन बसु श्राध । कायोत्सर्ग जोग प्रभु सा
।। ६ ॥
दोहा
गर्म चैत्र बदि पंचमी, जनम पोष नदि ग्यारसि । फागुण बदि तिथि सप्तमी, तप निर्वाण इलास ॥ ७ ॥