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________________ ५० कविधर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज चौपई धुर राणा नांगो तन। दिन अन तुसीमा भणों । कमलाक्षत लांघरण ध्वज चंग । गिरिहोत्तर सो गएरा धर संग ॥ २ ॥ तीन लाष पूरब की प्राव । अरुण वरण दीसे तनु भाव ।। धनक अठाईसो परयांन । काय तुरंगता शुभग वर्षान ॥ ३ ।। तीनि जन्म भै पहिल जाचि। इक्षाक वंश उप प्रमु सांप ॥ सोमदत्त मंगलपुर राय। दूजै दिन गोक्षीर घटाइ ।। ४ ।। वृक्ष प्रियंगुतरु तपन्नत लीयो । कर्मनास को उदिम ठयो ।। गोधूलक को समयो जानि । केवलरिद्धि भई भगवान ।। ५॥ समासस मोजत मय माघ । अमरान रच्यो भक्ति हित साधि ।। गिरिसम्मेद पंचम कल्याए । ठाढे जोगजु कृपानिधान ॥ ६ ॥ दोहा माध बदि छठि गर्म जिन, तप फागुण बदि चौथि । कातिग बदि तेरसि सुनौं, जनम ग्यान गुण गोथि ।। ७ ।। पूरणमासी चैत्र शुदि, कर्म सकल पग्जिारि । मुक्तिस्थल अविचल लह्यो, जिन स्वामी भवतारि ॥ ८ ॥ इति पमप्रभु वर्णन ७. सुपार्श्वनाथ स्तमन दोहा नौ करोरि सागर गए, प्रभु सुपार्श्व प्रवतारि । जो जन ध्यावे भाव घरि, ते पावै भय पारि ॥ १ ।। चौपई सुप्रतिष्ठित नृप वानारसी। मात महिसेना पुत ससी ॥ लाछण स्वस्तिक के प्राकार । नील वर्ण तन झलक अपार ॥ २ ॥ बीस लाख पूरब को भाव । द से धनुक काय को भाव ।। गणघर नवें पांच सुग्यान । इक्ष्वाक बंश मैं पर परयांन ।। ३ ।। तीन जनम थे स्वपर विचार । जुग बासर गोक्षीर पाहार ॥ महेन्द्रदत्त राजा थियो वान 1 पाटनपुर नगरी शुभयान ।। ४ ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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