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________________ कांवकर बुलाखीचन्द, बुलाकोंदास एवं हेमराज लांछन वृषभ तणो सोमंत । कंगन घरण गरीर दीर्पत ।। वंश इशाक प्राव परिमाण । लख चौरासी पूरक जान ॥ ग्यारह भव ते शान उचात । तब ते बंध्यो उत्तम मौत एक वरष पीछे प्रहार ! प्रासुक इक्षुदंड. रस सार ॥१०॥ नृप यांस दियो प्रम दान । हस्तमामपुर जाकी पान | बट तर लोच किया है सार । मनपर हे असी प्राचार ।।१।। समोसरण चनपति ने करो। बारह योजन को बिस्तरयो । सफ करि उपज्यो केवल मान । राजरिदि भुगतें प्रबहात ॥१२॥ बोहरा.. पचासन प्रास्त ह, जिनवर घरपोज शान ! गिरि कइलास प्राकामा यत, तहाँ भयो नियणि ॥१६॥ नौपई . बदि अषाढ़ की दुतीया जोई । प्रभु को गर्भ कल्याणक होई ।। चैत बदि नोमी के दिनो । तप और जनम महोछव घनां ॥१४॥ फागण बदि ग्यारसि तिथि जान । श्री जिनवर भयो फेवलज्ञान ।। ताको कवि कहा बरननि करें । रसना एक क्रित कर उच्च रै ॥१३॥ कृष्ण चतुर्दशी माष जु मास । भयो निर्वाण नुक्तिपद वास ।। विधानंद परमातम भए । तीनि लोक जाके पद नए ।।१६।। बोहरा नर नारी जे भक्ति जुत, सिन दिन करे उपवास ।। फिरि पार्क भन मनुष्य को, मुक्ति होई भय नास ॥१७॥ इति वषभदेव वर्णन २. अजितनाय स्तवन सागर लाख करोरि पचास । बीते अजितनाथ परगास ।। जित रिपु राजा विजया मास । गज लांछप हाटक सम गात ॥१॥ पुरी भोध्या जन्म कल्याण । तीनि भालर ते भयो ज्ञान ।। भनक मारिसे साढ़े काय । लाल बहतरि पूरब प्राय ।।२।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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