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कविवर बुलाखीचन्द
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म को कोया तो कई नइ को रख य ग्राम एवं नगर वाले प्राश्चर्य करते और प्रश्न करने लगते कि यह विशाल संघ कहां से प्राया है तथा किस कारण से अपना देश छोड़ कर आगे जा रहा है । वे सभी कट्टर थे लेकिन अहिंसक प्रवृत्ति के थे इसलिये शान्तिपूर्वक निम्न उत्तर दिया करते थे
कौन देश ते या संप, पौराति कड़ी कार हो । उत्तर बेई सर्वे गुणमाल, वंश इसाक और जेसवाल ॥२४॥१५३॥ जेसवाल तही ते जानि, जेसवास कहित परवान ।
जैसलमेर से चलते बलत्तै पन्त में वे त्रिभुवनगिरि-ति हुगिरी-नगरी माये । चतुर्मास प्रा गया था इसलिये उन सबको वहाँ नगरी के बाहर अन में ही ठहरना
कुछ समय पश्चात् वहाँ का राजा जब यन क्रीड़ा के लिये प्राया मोर उसने इतने बड़े संघ को देखा तो उसने अपने मंत्री को पूछने के लिये भेजा तथा वापिस माकर मंत्री ने राजा को पूरा विवरण सुना दिया । राजा ने अपने ही मंत्री से फिर कहा कि ये लोग उससे प्राकर क्यों नहीं मिलते। इस पर मंत्री ने फिर निवेदन किया कि इनको अपनी जाति पर बड़ा गई है और यही जैसलमेर से निकलने का पारण है । पूरा वृतांत जान कर राजा को भी क्रोध प्रागया तथा उसने अपनी मूछों पर हाथ फेरा और वापिस नगर में चला गया ।
राजा की मह सब क्रिया वहाँ एक बालक देख रहा था जो अपने साथियों के साथ वहीं था। वह बुद्धिमान था इसलिये वह राजा के मनोगत भावों को पहिचान कर तत्काल अपने घर पाया और राजा की बात सबको कह दी तथा कहा
१. चले चले पाए सब जहाँ, हुती तिहुगिरी नगरी जहां ।
तापुर निकट इतो वन चंग, उत्तर्यो तहां जाइ यह संग ।
पाये यह जहाँ चातुर भास, सकस संघ उहां कियो निवास ॥२६॥१५४।। २. सचिव कहें इनें गवं अपार, याही ते नृप दिए निकार ।
सुनि राजा कर भूमि पर्यो, मन में रोस संघ परिफर्यो ।३१।। मुखत कछन को उधार, प्राए महिपति नगर मझार ॥३२॥१५४