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________________ ३४ कविवर लाखो बन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज का श्रादर करेंगे। उन्हीं वक्तियों से अपना व्यवहार, खान पान एवं विवाह सम्बन्ध रखा जायेगा | इनको छोड़कर जो धन्मत्र जावेंगे वे सब दोष के भागी होंगे। इस प्रकार वे सभी पुनः अपने धर्म को ग्रहण करके जैसलमेर नगर में आ गये और भगवान महावीर का समवसरण भी मगध देश के राजगृही स्थित पंच पहाड़ी पर चला गया । " उसी समय से वे सब जैसवाल कहलाने लगे। उनके मन से मिध्यात्व दूर हो गया। नगर में मन्दिरों का निर्माण कराया गया और वे उत्साह पूर्वक जिन पूजन प्रावि करने लगे । चतुविध संघ को दान आदि दिया जाने लगा । प्रतिदिन पुराणों की स्वाध्याय होने लगी । जो लोग पहिले दरिद्रता से पीड़ित थे वे सब धन सम्पत्तिवान बन गये | सब के घरों में लक्ष्मी ने वास कर लिया । और वे सब भी मन्य कार्य छोड़कर व्यापार करने लगे । कुछ समय पश्चात् एक श्रावक की कन्या विवाह योग्य हो गयी । वह प्रत्यधिक रुपवती थी इसलिय सारे नगर में उसकी चर्चा होने लगी। सभी उसके साथ विवाह करने के लिये प्रस्ताव भेजने लगे। वहां के राजा ने भी उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव भेज दिया । राजा के प्रस्ताव से सभी को श्राश्चर्य हुआ । जैसवाल जैन समाज के पंचों की सभा हुई। सभा में यह निर्णय लिया गया कि वे जैनधर्मावलम्बी है इसलिये विवाह सम्बन्ध भी उसी जाति में होना चाहिये ।" पंचों का निर्णय राजा के पास भेज दिया गया । इस पर राजा ने उन सबसे जैसलमेर छोड़ने एवं राज्य की सीमा से बाहर निकल जाने का आदेश निकाल दिया । उन्होंने भी राजा का आदेश मान लिया और बाध्य होकर जैसलमेर १. तब बोले गौतम बलराइ, जैनधर्म त्यागे रे भाइ । जो वह फेरि भाव धर्म, विर नाइ तुम तें दुष्कर्म ।।१२।। १५३ ।। २. सुगत सर्वाति के विसमय भई, कौन बुद्धि राजा यह कई । अब हम जैनधर्म व्रत लियो ||२०| पंच सकल जुरि सवर जाति सौ रह्यौ न काज, खान पान अथ सगपन साज |
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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