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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
चौपाई त्याग ग्रहणवै न परस, केवल शान मेकपन वरस । देसन शामन के गुण सेती, गायक वस्तु जगत में जेती IIEIL
दोहा सहशि यकति : मे, इ. मेष प्रतिभास । स्याग ग्रहण पलटन क्रिया, शान दसा में नास ||५|| जैसे चोखे रतन की, ज्योति प्रकप प्रकास । सहज रूप थिरता लिये, त्यों ही ज्ञान विलास ॥८॥ बिन इच्छा प्रतिबिंब सब, दरसे दरपण माहि । त्यौही वैवल ज्ञान में, शेय भात्र प्रवाहि ।।५।। न्यारी दरसरण पारसी, न्यारे घट पट स्प। स्यों मारे य जायकी, यहै मनादि अनूप ||८||
कवित्त देश क र जानस परमातम निज रूप वसंघ । सो परमातम सहज स्वभावनि प्रायक लोकालोक प्रसंष ॥६॥ सात श्री जिनवर इम भावत शुत भावी त केवल रेख । केवल ज्ञान भवर श्रुत केवल दोउ देदत प्रातम भेष ।। पूरन भाव मनंत सक्ति करि बेदत प्रगट केवली मान । अत केवल केतीक शक्ति से क्रमवत्ती पेदत परवान || दोह एक शान निहलै मनि, भेद भाव प्रावरण बखान । जैसे मेष घटा माछादित, दीसत अधिक हीन दुति भान Hon
मडिल मतिज्ञामादिफ भेव एक ही शान के । ज्यों बादल भावरन ल रहे भान के ।। श्रत केवल सामान्य विसेष विवेक है। निहन शायक जोति ज्ञान रवि एक है ||११||
कवित्त जिनवर कथित वचन की पंति द्रव्य सूत्र कहिए परवान । ते सब वचन स्वरूप पनतम ताके निमित पाय बह शान ।