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________________ २५० कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज जुदे न पायक उष्णता, जुदे न चेतन प्रात अधिक होन के मान तं, साषत भित्र प्रदान ।।६७। सातै चेतन ज्ञान सों, जहा मषिमता हो। सोनाम प्रचेता, घट पटाद बिषि सोह॥६॥ ज्यों पावक गुन उष्ण है, स्यों चेतन गुन ज्ञान । अधिक हीन जो परन, उपजत दोष निदान ।।६।। अधिक हीन नहीं प्रात्मा, है गुन ज्ञान प्रवान । यह याको सिद्धांत सब, जान हू वचन निदान ||७|| सकल वस्तु जो जगत की, शान मांहि झलकत । ज्ञान रूप को वृषः धित, गटत ५ मा ७१॥ कवित ज्यों मल हीन पारसी के मध्य घटपटादि कहिए विवहार । निहच घटपटादि न्यारे सब, तिष्टत प्राप ग्राप प्राधार । त्यों ही ज्ञान ज्ञेय प्रति बिबित, दरसन एक समय संसार । निह भिन्न ज्ञेय ज्ञायक कहति शान ज्ञेय माकार ||७२।। अडिस पट पटादि प्रतिविछ भारसी मांहि है। निह पट पट रूप पारसी नांहि है। स्यों ही केवल मान ज्ञेय सब भासि है। अपने स्वत: स्वभाव सदा मविनास है ।।७३| कवित ज्यों गुन शान सुही परमातम सो परमातम सो गुणज्ञान 1 धर्म प्रधम काल नभ पुग्गल ज्ञान रहित ए सदा प्रजान । तातं ज्ञान शक्ति परमातम ज्ञान हीन सब जष्ठ परवान । क्यों गुण ज्ञान क्यों ही मुख वीरज, यों मातम मनंत गुगवान ।७४। दोहा शान प्रवर परमात्मा है अनादि सनमंत्र । ज्ञान होन जे जगत में, सबै द्रव्य अरु ग्रंथ |१७५॥ है अनादि सनमध ।।७५॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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