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कविवर बुलाखीचन्द, बलाकीदास एवं हेमराज
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रचना कामा नगर में ही की गयी थी। कामा एक सूबा था जिस पर कीतिसिंह का शासन था और उसने अपने गोयं एवं पराक्रम से कितने ही देोगों पर कसा कर लिया था । उपदेश दोहा प्राप्तक की रचना संवत् १७२५ कात्तिक सुदी पंचमी को समाप्त की गयी थी।
'उपदेश दोहाशतक' एक प्राध्यात्मिक रचना है जिसमें मानव मात्र को सुपथ पर लगाने, भात्मिक विकास करने एवं बुराइयों से बचने का उपदेश दिया है । जीवन में दया व दान को अपनाने का भाग्रह किया गया है । साथ में यह भी लिखा है कि जिसने जीवन में दान नहीं दिया तथा प्रत एवं उपवास नहीं किये इसका जीवन ही व्यर्थ है क्योंकि मनुष्य तो मुट्टी बांधे माता है और हाथ प्रसार कर चला जाता है
पिये मपान सुपत्त को, क्रिये न वस उर धारि । भायो मूठो बोधि के, मासी हाथ पसारि ॥१३॥
यह भूत प्रात्मा जगह २ प्रात्मा को 'ढता-फिरता है जबकि इसी के घर में यह मात्मा बसता है जो स्वयं निरंजन देवता भी है
ठौर और लोधत फिरत' काहे बंध प्रवेव । तेरे ही घर में वस, सरा मिरंजन वेग ॥२५॥
सतक में १०१ दोहा है। इसकी पांडुलिपि जयपुर के बीचन्द जी के मंदिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है।
__ ३ गणितसार
कविवर हेमराज गोदीका गणितज्ञ भी थे। इन्होंने गणितसार के नाम से एक लघु रचना को छन्दोबद्ध किया था। इसमें ८८ पोहा छम्द हैं। जिनमें गणित के विभिन्न पथों को प्रस्तुत किया है। अब तक इस ग्रन्थ की एक प्रति जयपुर के दि. जन मंदिर पाटोदियान में तथा एक पाण्डुलिपि मादिनाप पंचायती मन्दिर बून्दी में संग्रहीत है । दून्दी वाली पाण्डुलिपि संवत् १७८४ की है तथा सांगानेर में लिपिबद्ध है इसलिये हमने गरिणतसार को हेमराज मोदीका की कृति माना है। जयपुर वाली