SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ কৰি নল २० यह विचार मन में तिन राखी, पोरे हेमराज सों भावी । मागे राजमम्स ने कोनी, समयसार भाषा रस लोनी ।।६।। अव भो प्रवचन की ह भाषा, तो जिनधर्म वर्ष सो साखा । सात करहु विलंब म कोज, परभावना अंग फल लोज ।।७।। कोरपाल ने अपनी भावना व्यक्त की और उसके फल प्राप्त करने को कवि को प्रलोभन दिया। हेमराज संवेदनशील विद्वान थे। वे कवि एवं गछ लेखक दोनों ही थे। गद्य पद्य दोनों में ही उनकी समान गति थी। इसलिये उन्होंने भी तत्काल प्रबचनसार की गद्य टीका लिखना प्रारम्भ कर दिया। जिन प्रयोष अनसार प्रमे हित उपस सौं। रची भाष प्रविकार, जयवंती प्रगटहु सदा ||६|| हेमराज हित मानि, भविक जीव के हित भणी। जिनवर प्रानि प्रवानि, भाषा प्रवचन की कही ।।१०।। कवि ने प्रपचनसार की जब रचना की थी उस समय शाहजहाँ बादशाह का शासन था। जिसका उल्लेख कवि ने निम्न प्रकार किया है प्रयनिपति वंदहि चरण, सुनय कमल विसंत । साहजिहां बिनकर उर, मरिगन तिमिर म संत ।। प्रवचनसार की गद्य टीका कवि ने कर प्रारम्भ की इसका तो कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन वह बित् १७०६ में समाप्त हुई ऐसा उल्लेख अवश्य मिलता है सत्रह नव ऊसर, माघ मास सिस पाल । पंचमि आदितवार को, पूरन कोनी भाष ।।१६॥ प्रवचनसार मूल प्राचार्य कुन्दकुन्द की प्रमुख कृति है। इस पर प्राचार्य अमृतचन्द ने संस्कृत में तत्व प्रकाशिनी टीका लिखी थी। यह एक सैद्धान्तिक ग्रन्थ है जिसमें तीन अधिकार है। जिनमें जान, शेयरूप तत्वज्ञान के कथन के साथ बन
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy