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पाण्डे हेमराज
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पुत्री जैनी को भी इन्होंने धर्म अच्छी शिक्षा दी थी। बुलाकीदास कवि इन्हीं जेनी / जैनुलदे के सुयोग्य पुत्र थे जिनके प्रश्नोसर श्रावकाचार एवं पाण्डवपुराण का परिचय दिया जा चुका है ।
हेमराज आगरा के निवासी थे। ये दिगम्बर जैन अग्रवाल थे । ग इनका गोत्र था। इनका परिवार ही पंडित एवं साहित्योपासक था । श्रागरा उस समय बनारसीदास, रूपचन्द कौरपाल जैसे विद्वानों का नगर था। नगर में चारों ओर शास्त्र चर्चा, अध्यात्म ग्रंथों का वाचन साहित्य निर्माण एवं संगोष्ठियां श्रादि होती रहती थी। हेमराज पर भी बकाया हो और उन्हें साहित्य निर्माण की घोर प्राकृष्ट किया होगा ।
जन्म एवं परिवार
हेमराज का जन्म कब हुमा, उनके माता पिता, शिक्षा दीक्षा, विवाह भादि के बारे में उनकी कृतियाँ सर्वथा मौन हैं। लेकिन यह अवश्य है कि हेमराज ने की शिक्षा प्राप्त की होगी। प्राकृत, संस्कृत एवं राजस्थानी तीनों ही भाषाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। वे गद्य एवं पद्य दोनों में ही गतिशील थे । मच्छे कवि थे । शास्त्रज्ञ भी थे इसलिये समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय जैसे ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन भी किया होगा और इनकी विद्वत्ता को देखकर ही कौरपाल जैसे पंडित एवं तत्त्वश ने इनसे प्रवचनसार को हिन्दी गद्य पद्य दोनों में भाषा करने का अनुरोध किया था ।
कवि का सं. १७०१ में प्रथम उल्लेख पं० दौरानन्द द्वारा किया गया मिलता है । इसलिये उस समय इनकी ४०-४५ वर्ष की आयु होनी चाहिये और इस प्रकार इनका जन्म भी संवत् १६५५ के आस पास होना चाहिये। संवत् १७०६ में इन्होंने अपनी प्रथम कृति प्रवचनसार भाषा की रचना की थी उस समय तक कवि की ख्याति विद्वत्ता एवं काव्य निर्माता के रूप में चारों ओर प्रशंसा फैल चुकी थी ।
हेमराज और बनासीदास
पाण्डे हेमराज का तत्कालीन विद्वान् महाकवि बनासीदास से कभी सम्पर्क हुआ था या नहीं इसके बारे में न तो बनारसीदास ने अपनी किसी रचना में हेमराज का उल्लेख किया है और न स्वयं हेमराज ने अपनी कृतियों में बनारसीदास का स्मरण किया है । छो बनारसीदास के एक मित्र कौरपाल का प्रवश्य उल्लेख ना