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कविवर बुलाखीचन्द, बुला कोदास एवं हेमराज
छंच पोर निरपंट मजिहिये न । प्रत्पषि गुरु जान, जाण कहो केय बखाए । शिष देवी पर लगीह, देव्यो बुद्धि प्राप्त । रसिक पुरष मन रंगना, फरि समिविया उल्लास |२|
इसके मागे तीन सर्वस्या छन्द बिना प्रकारादिक कम के हैं तथा पांचवे नछ से स्वर और व्यञ्जन के क्रम से हैं। पूरी बावनी उपदेश परक है तथा पौराणिक उदाहरणों के द्वारा अपनी बात प्रस्तुत की गयी है। एक पद्य देखिये
प्रादि को कारणहार प्रभु राखि प्रावि रे । भूलो रे गमार तुही गर भव खोयो युही । प्रम विणा दीये कुण कहे तोरि वापि रे । काम कुं पातुर भयो पापसु जमा सरो। गयो परसी नियोष माहि बुबन फरावि रे । सोचि कई जीव माहें जीत के हारि जाई ।
एक बिना भगवंत सर्व काम वादि रे ।। हेमराजि भगह मुनि मुणो सजन अन मेरो जमग्यों है जिन गुण गायवो ।।७।।
हितोपदेश बावनी की एक पांडुलिपि जयपुर के दि० जैन मन्दिर बड़ा तेरहपंथियों के मास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । कृति की लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है
इति हितोपदेश बावन्नी हेमराज कृत संपूर्णम् । सविया संपूर्णम् । संवत् १७५७ वर्षे मिती वैशाख सुदि ११ दिने गुरुवासरे लेखमोस्तु ।
उक्त पाइलिपि पं. विनोदकुमार द्वार। रूपनगर में बहुजी श्री यशप जी वाचनाचं लिखी गयी थी। प्रति में १२ पत्र हैं तथा वा सामान्य है।
पाण्डे हेमराज
पाण्डे हेमराज इस पुल के तीसरे कवि है जिनका यहाँ परिचय दिया जा रहा है। ये १७वीं शताब्दि के अपने समय के प्रसिद्ध कवि एवं प्रसित थे । साहित्य सेवा ही इनके जीवन का प्रमुख धर्म था। ये हट अवानी श्रावक थे इसलिये अपनी