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________________ पाण्डवपुराण लछिन त पहिचानि भटन के सनमुखे । चले वाइ र मांहि धनंजय ह्न रु ॥ २१६ ॥ मन केसरी मत्त गयंदन की हतं । भूषन की त्यों अर्जुन दृत्ति के जय रतै ।। घोर वीर रा मांहि पितामह धाइयो । असंख्यात सर से नर को तिन खाइयो । १२० ।। इन्द्र पुत्र सरि बारा भीषम कूलहीं । प्रोर राह ठहराइन ज्यों तून वाचन तैं सुर सरिता सृत नै नभ छौ । मनो मेघ जल बरबन कौं उदित भयो । २२१॥ अंधकार मांहि करयो सर करत राति मनु दिन हैं सूर खिपा के ।। करे पार्थन ते सब निरफल छिन विषै । पूल हीं ॥ के । करत जुद्ध बहु धीरज घरि के सतमुखं ।। २२२ ।। छुटत पार्य के बान महा परचंड हो । करत खंड बल चंड गजन की सुंड ही घरन हीन इय फीने उन्नत वदि के करत चूर रथ चक्र सनं तं भेदि के ।। २२३ ।। कवच चूर करि सूरन के सर फोरि के ममयान प्रति नर्म सुधसहिंतु जोरि के || सकल पार्थं न छेवे धनू गांडीव ते । मरे भूरि भट रण में छुटि के जीव हैं ॥ २२४ ॥ सवैया २३ बसि के निषंग बास सर ही के रूप तीछन है भाल चुच पीछे पर लाइ के पनि बेसि के सरासन पं । प्रकास में उडतु है || सर को कठोर कंठ | सो छुट है |1 १८६
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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