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________________ {ex कविवर बुलाकीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज बोहरा सात अछोहिनि बल सहित, भूपति बली प्रसस्त तिनकी पाइ सहाइ हरि, सब घरि करे निरस्त || १०१ || एकादसह छोहिनी, दल दुरबल हम साथ | कहा होत बहुते भये, जो न बसी हूं नाथ ॥ १०२ ॥ ऐसी सुनि हुरजोध नृप को चक्रि प्रति स सत्रुन कौं तिन सम गिनत, भारत चित अति ग । ।। १०३ ।। सर्वय्या २३ माजरा सुद्ध कौल रहे सम भार घरा परि, भोर भये रवि की कर लागें ॥ ज्यो बिचरं मृग होइ सुछंदन, केसरि सोभित केसरि जायें। , मुक्त करा मांहि भरी सब देखत ही दश हूं दिसि भागं ।। १०४ ।। यों कहिकै त्रय खंड पती, गजराज चढे रण कौं चढि आयो । ताही समं दिसि नाथन को दस दिसि साथहि कंप दिवायो । संग लये गजराजनि के नर, छत्र निसे नभ भांगन छायो । रेणु उड़ाय चमु चपनें घन, रूप भये तिन सूरहि पायो ।। १०५।। जरासंधि निज सेन गरुड व्यूह श्रीकृष्ण वोहरा में, नै सर्वया २३ चका व्युह सुरचाय | ठान्यौं बहु भय दाय ।। १०६ । । दोक महा दल दारुन ले हम, घोर भयो तम भू रज छाये । जाय छिपे जुग कोकन के निज, आलनि में रवि अस्ताये ॥ काग पुकारि उठे भय पाय सुद्योसहि में निति के भरमाये । जुद्ध पग्य प्रति कोप जग्यो, जम के परलै प्रगटी रन ठाये ॥ १०७॥१ वोहरा माधव मागध यों मरे, एक राज के हेति । जीवन ममता वजि सुभट, सरन मंडे कुरुखेत || १०८ ||
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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