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________________ १७२ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज उन्ना सं धी पटु :: जि का भी ग: प.। र पंच दल समा दाई ॥१॥ __ -मथ अश्व वर्णनं - चञ्चल चाल चले चन चामर, चाव तुरंगम अंग सुहाए । फिक्रिनि हार गरे भप पाखर लापर कंचन जीन कसाए । मारू बजे तजि नीद न, परचें नही जमके नटवाए। पौन के पूत किंधों बड़या सुल सत्रु समुद्रहिं सोखन धाए ।।१२।। -अप पदाति बपन -- स्यांग सु कौच कठी दिढलाइ, किधों तन पंधन की छवि छाया । सूर पयादल ढाल विसाल महा करवाल लयें कर पाए ।। कांघ कमान कटारि छुरी सर कोस सु बैंचि कटिझाए । दुरजन के दल वारन की मनु दौरि चले जम पुत्र महाए । ८३|| वोहा ऐसी विधि चतुरंग दल, लीन आदक राई । प्राइ ठये कुरुखेत तट, महा उदय फौं पाइ ।।४।। दुनिमित्त तब बहु भये, जरासंषि की सैन । दृश्य के सूत्रक प्रगट ही महा मजस के दैन ।।५।। भयो राहुते रवि गहन, मगन मांहि भयदाई। वरस्पों बारिद बिन समैं, दीनी सैन बहाई ॥८६॥ प्रात ही काग धुजान पं, रवि सन मुख एडन्ति । गृद्ध कुद छवादि पै, बैठे नसनि खनन्ति ॥ ७॥ भूकम्पन अनहद रुदन, मार मार ध्रुनि बाह । बार-बार उलका पतन, पिर चिष्टि दिगदाह ।।८।। कसगन लखि कोरब पति, मन्त्रि प्रतें यो भाखि । दुनिमित्त हे मन्त्रिपति, लखीयत है वहूं प्रॉखि ।।६।। मंत्रि कहै भो प्रमु कहाँ, नाहि सुनी सुम बात ! गिलि है सर्बाद तिमिगि ज्यों, यह कुरुश्चेत विश्यात ।।६।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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