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________________ १७१ पाण्डवपुराण यौं कहि निकस्यों दूत सो, द्वारापुर में पाइ। नमस्कार फरि हरि प्रतें, कयों कि सुनिये राह ।।७४।। आई तिनको बाहनी, कुरु स्खेतहि है देव । जुस विष संकट भये, कणं न प्रावत एव ।।७।। तुम फु प्रमु गंतव्य है, तुरितहि मब कुरु खेत । सत्रन सौं जोषष्य है, जुछ विष जय हेत ॥७६॥ सोरठा ऐसी सुनि हरि पूर रण को उदित चित्त भये । पाच जन्य को पूरि ५ अम्बर धुनित सुन्यों ॥७७।। सुनत समस की गाजि सैना केसव की चली। कुरक्षेत्राहि ग्न कान्द्र, राजन इन्द्र नम मनो '.७८।। सर्वया २३ माधव की चतुरग रमु चल चल चाल लई अचलाई । मानहुं मेटि दई पगस दरि रेनु भई सु पकासहि घाई । के घफुलाई के भार पर भय भीरू भमें सुर लोकहिं पाई । के उमही परि जारन को परसाप दवानल घूम महाई :१७६॥ अथ चतुरंग व वर्णन -- प्रथम गज वर्णनं - मत्त मयंद झर मद नीरहि स्याम मनौं घन काल घटाई । सेतु सुकेतु ल- तिनपै बग पंकति की परसी उपभाई ।। कंचन की चमके चई प्रोर बनी चउरासि किंधों चपलाई। घेरि चले हरि रूप धरै मनु मेटन को परि ग्रीषमताई ।।८०11 --अथ रथ वर्णनं -- सागर छार पपार चमुंभरि तारन कौरथ पोत सहाई । बचमई पर वक्र धरै मध प्रश्व चल मनु पौन बहाई ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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