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________________ कविवर बुलास्त्रीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज पूछी ताहि नरिंद नैं, कहा ते भायो भाइ । कहो कि द्वारा नगर, तै तुम देखन को राइ | १०|| पुनि पूछा ा म , होल नाम है भूप । तिन भारुपी बैंकुठ बल, नेमि नृपति जिन भूप ॥११॥ जादव निवसे सुनत ही, जरासंघ हूं ऋद । जलघि हल्यो मनु प्रलय को, चस्पी करन को जुस ।।१२॥ शुद्ध वहत दिन हेतु ही, ऐसे नारद पाइ । जरासंध को छोम सब, हरि सी को बनाइ ।।१३।। नेमि निकट फिरि जाइ के, प्रागै ठाड़ी हो । पूर्थी परि सौं जीति हो, सत्य कहो तुम सोइ ।।१४।। भनाय अकाइ के, गिरयों हरि की पौ । सब अपनी जय जांनि के, विष्णु पदयो दल जोर ।।१५।। बल हरि के संग नुप चठे, समुदविन बसुदेव । मनावृष्टि परु धर्मसुत, भीम सु पणुन एव ।।१६।। घृष्टद्युम्न प्रचम्न जय, सत्यकिसारण संछ । भूरिश्रया सहदेव घर, भोज स्वर्ण गर्भवु ।।१७।। द्रुपद बध प्रक्षोभ विदु, सिंधीपसी पोंबरीक । नागद नकुल सुक्रपिल कुरु, खेम धूर्त बाल्हीक ।।१८।। महानेमि दुर्मुख निषष, विजय पारय भानु । चार कृष्णा उन्मुख जयन, फुनि कृतबर्मा जान ।।१६।। नृप शिखंड बैराट नृपति, सोमक्षप्त इन मादि । जादव पछी नृप महो, प शुद्ध कौं सादि ॥२०॥ जरासंघ को द्रुत सब, दूरभोषन तट जाइ। नमसकार करि बीनयो, सुनौ चकि बचराइ ।।२१।। दुदर मार्यो कंस जिनं, पक्रिसूता पति भूर । मुष्टि घात से चूरियौ, मल्ल बली चानूर ॥२२॥ करिहिं धर्मो गोबर्ट' गिरि, पहि मर्दक गोपाल । प्रगट भयो सो भूविष, भारत मद सविक्षास्त्र ||२६॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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