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________________ १५२ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज गणनायक गणधर गनी, गणपति गोतम नाम । अगति गहन को प्रगति गति, गाऊं तसु गुन ग्राम ।। ७ ।। जोब जुगति जस जननको, जननी जगत विख्यात । जैनी यांनी जिन तनी जभौ जोगी जती मारथी, जनम इस जुधि रीति । थिर थानक बिर हैं यप्यो सुधिर जुभि स्थिरमीत ।। ६ ।। भीम भयानक भव विष, भ्रमत भयो भयवंत । यथावत जात ।। ८ ।। भरम भाव भारत रच्यो, मलख भगोवर प्रातनां अरजुन भाये प्राप मैं, निकुल करे कूल करम के कलायान वाले कवि कुल कहते हैं, नकुल नाम निरबिधू ।। १२ ।। सुगुतसतसम, देव करें जिस सेव । कविलक्षू । भीम नाम इहि मंत्र || १० || प्रनभ इ जु प्रचूकि । पाराची मह मूकि ॥। ११ ॥ सुर सुभट सुभ साहसी, सत्य एवं सहदेव ।। १३ ।। पाई जिन या कालम, श्रुत सागर भद्रबाहु विश्रुत सूरि पुरखं मन उर्जयंत गिरि सोस । कुंदकुंद मुनि ईस ।। १६ ।। या पुराण में कीजिये, जाकी साख सुविश्व मैं ताक सुमिरत उर विषै प्राह जिन पाषान की या फल मैं वादिन करी, देवागम जिन स्तवन सौं, प्रगट सुरागम कीन । समंतभद्र भदार्थ मय गुन ग्यामक गुन लीन ।। १७ ।। ज़िन वारिधि व्याकरन को लक्ष्मी पार मुनिराय । पूज्यपाद नित पूज्य पद पूज्ये मनवच काय ॥ १८ ॥ निःकलंक मकलंक जस, सकल शास्त्रविद जेन । माया देवी ताहिर, कुं भविता पदेन ॥। १६ ।। की चाह । निस्वाह ।। १४ ।। विसाल । अभिलाष ।। १५ ।। चिरंजीव जिन सेन जति, जाको जस जग मोहि । जिन पुरान पुरुदेव करें, वरस्यों चाहे साहि ॥ २० ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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