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पाण्डव पुराण
(मुलाकीदास) रचना संवत् १७५४ (1697 A. D.)
प्रथ पाण्डव पुराण माचा लिरूपते
प्रथम सर्वज्ञ नमस्कार छप्पय छंद
सैवत सत सुरं राय स्वयं सिद्ध सिंथ सिरि मयं । सिरिष सरस नेय प्रमाणे सैसिधि अयं ।। करम कदन करतार करन रन कारन घरन । मसरन सरन प्रधार मदन दहन साधन संवन ।। बह विधि भनेक मुन गन सहित बंग भूषन दूषत रहित । तिहि नंदलाल नंदन नमत सिदि हेत सरयंश नित ।।१।।
बोहा वृष नाइक वृष वाद है वृष मंक दृष भैसें । सृष्टिं विधाता बृह्ममय बंदी पादि जिनेंस ॥ २ ॥ चंद्रालत मंद्र ति, चन्द्रप्रभू भगवान । चार चरन चरपी सदा, बितं चकोर सम ठान ।। ३ ।। पाति रूप सिर्व मर्य सही, सकल सत्वं सुखदाय । शांति सरम सुमिरी सदा, सरसं सिंधि सहाये ।। ४ ।। नगन भंग मनगहा, निपल सम नग इसे । मेमि धर्मरण हैति जिन, नमी न्याय निजसीस ।।३ वर्तमान विभु वीर्य क्ल, पर विधान पयत । विविध विधाता वोष मय, बिरको बुधि विकसंत ।।६।।