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________________ ! | ↓ कविवर बुलाकीदास १२३ रहा । प्रतिदिन शास्त्र स्वाध्याय एवं शास्त्र प्रवचन सुनने में समय व्यतीत होने लगा । उस समय माता ने अपने पुत्र के समक्ष पाण्डवपुराण की भाषा करने का निम्न शब्दों में प्रस्ताव रखा सब सुख व तिन यो कही सुनी पुत्र मो बात । सुभ कारज ते जग विधं सुजय होय विख्यात ॥४७॥ महापुरष गुन गाइए, ताही पहांनि । दो लोक सुखदा है, सुमति सुकरिति यांन ॥४८ सुनि सुभचन्द्रप्रतीत है, कति पथं गम्भीर | जो पुराण पाण्डव या सीर ४३ वाको पर विचारि के, भारथ भाषा नांम | कथा पांडु सुत पंचमी, कीज्यों बहु अभिराम ।। ५० ।। सुगम भयं श्रावक सर्व, भने भनावं जाहि । सौ रचि के प्रथम ही, मोहि सुनावी ताहि ॥ ५१ ॥ बुलाकीदास की मात्रा स्वयं विदुषी बी इसलिए उसने अपने पुत्र से भट्टारक शुभचन्द्र प्रणीत पाण्डवपुराण का हिन्दी में सुगम मर्थं लिखकर सर्वप्रथम उसे सुनाने के लिए कहा जिससे भविष्य में उसकी निरन्तर स्वाध्याय हो सके। बुलाकीदास की माता के प्रति प्रसार भक्ति थी इसलिए उसने तत्काल साहस बटोर करके लेखन कार्य प्रारम्भ कर दिया। जितने अंश को वह भाषा लिखता उतना ही अंश बह अपनी माता को सुना देता । इहि विधि भाषा भारती सुनीं जिनुलदे माइ । धन्य धन्य सुत सौ कहीं, धर्म सनेह बढाइ ||५॥ अन्त में ग्रन्थ समाप्ति की शुभ घड़ी भागयो धौर वह भी सवंत् १७५४ भाषा सुदी द्वितीय गुरुवार को पुष्य नक्षत्र की घड़ी । इस प्रकार प्रथम ग्रन्थ के ७ वर्ष पचात् कवि अपनी दूसरी कृति साहित्यक जगत् को भेट करने में सफल रहे । पाण्डवपुराण को कवि ने महाभारत नाम से सम्बोधित किया है । कवि की यह कृति जैन समाज में अत्यधिक लोकप्रिय बनी रही। इसकी पचासों पाण्डुलिपियो प्राण भी राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों के प्रन्थागारों में संग्रहीत है ।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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