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________________ कविवर बुलाकीदास १२१ नन्दलाल एवं जैनुलदे पति पत्नि के रूप में सुख से रहने लगे। दोनों में प्रत्यधिक प्रेम था तथा वे जयकुमार सुलोचना के रूप में सर्वथा विस्यात थे । प्रश्नोसर श्रावकाचार में इन्हें रुकमरिण और श्याम के रूप में लिखा है। उन्हीं के पुत्र के रूप में बुलचन्द ने जन्म लिया जो अपनी माता के लिए प्राणों से भी प्यारा था । कविवर बुलाकीदास का बचपन में बूलचन्द ही नाम था । बूलचन्द बड़े हुए । प्राजीविका के लिए भागरा से इन्द्रप्रस्थ (देहली) आ गये मौर जहानाबाद रहने लगे । उनकी माता जैनुल भी अपने पुत्र के साथ ही देहली पाकर रहने लगी। वहां माता ६, पुत्र दोनों ही रहने लगे। ऐसा लगता है कवि के पिता का जल्दी ही स्वर्गवास हो गया था । पपने पुत्र के साथ जैनी का प्रकला पाने का मर्थ भी यही लगता है । वहीं पं० अरुणरत्न रहते थे जो सभी शास्त्रों में प्रवीण में । संस्कृत प्राकृत के दे अच्छे विद्वान थे । वे ग्वालियर ( गोपाचन ) के रहने वाले के | बुलाकीदास ने देहली में उन्हीं के पास अन्पों का विशेष ज्ञान प्राप्त किया था। - ----------- बुलाकीदास संस्कृत के अध्ये ज्ञाता थे। उन्होंने विवाह किया अथवा नहीं। इसके बारे में दोनों ही कृतियां मौन हैं । क्योंकि यदि उनका विवाह होता तो पलि का परिचय भी अवश्य दिया जाता। वे सम्भवतः पविवाहित हो रहे होंगे। प्रथम रचना खुलाकीदास ने सर्व प्रथम 'प्रश्नोत्तर श्रावकाचार' का हिन्दी में पद्यानुवाद किया । प्रश्नोत्तर श्रावकाचार मूल संस्कृत भाषा में निबद्ध है जो भट्टारक सकलकीति की रचना है पद्यानुवाद करने के लिए कवि की माता जैनुलदै ने इच्छा व्यक्त की थी। सब सुख देके यों कही, सुनो पुत्र सुभ बात । प्रश्नोत्तर सुभ पन्ध की, भाषा करह विख्यात ।।२२।। १. बहु हेत करि सम ने यो जाम को मेव । तब सुबुद्धि घर में गगी करि कुधितिम च ।।२।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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