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वचन कोश
खग चौपड़ की भाषा जेती । प्रगटे अनि हृदय सौ तेती ॥ तिनितें जो कछु भावी काल । प्रगट बहान्यो दीन दयाल ।। ६१ । सुख दुख को श्रागम यही अब जग सगुण कहा सही || वह निमित्त को चौथो भेद । सुर कहि नाम बनें वेद । १६२ || निलम से श्री लसन है आदि । सामुद्रिक से जुड़े प्रनादि || तिनिके फल को पूरा ज्ञान । व्यंजन अंग तनों गुण जांनि ॥ ६३॥ श्रीवच्छादि लांछण लीक | अष्टोत्तर सो तिनिकों ठीक |
कर पतरत शुभा शुभ जेम लक्षा केवल भाखें तेम ॥ ६४ ॥ वस्त्र शस्त्र उमापति छत्र । श्रासन सेनादिक भरू वस्त्र ॥
राक्षस सुर नर अन्स मंकार ! मूषक कंटक शस्त्र पहार || ६५ ॥ गोमय अर्गानि विनासी होइ । शुभ मी अशुभ तास फल जोइ || प्रगट शंसेनहिन अधिकारी के माहि ।। ६६ ।। सकल पदारथ जो जग रचे । जब वे भाइ स्थपन में पचे ||
तिनिमें प्रगट सुख श्री ताप वरणि सुनायें स्वपन प्रताप ॥६७॥ इह विधि जे श्रष्टांग निमित्त । बरण सुनावें तहां पवित्त ॥
सबकी संसे खायें घोर बुद्धि निमित्त प्रतिग्या जोर ।। ६८ ।।
दोपरा
इह श्रष्टादश गजुल, । बुद्धि रिद्धि गुरण गेह
विमल रूप प्रगटें सदा, भाई तपोधन देह ॥६६॥
इति बुद्धिवर्णनं
प्रथमोषधी रिद्धि वर्णनं
चौपर्ड
अब सुनि रिद्धि प्रौषधी भेद । प्रष्ट प्रकार बसांनी बेद || विदुमल श्रामज्वल शूल मंग | सर्व दृष्टि विष महा प्रभंग ||१||
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