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________________ tv कांवेवर बुलाखोचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज 1 जे सब मिलि मट्ठावन लाख 1 लाख छबीस पंचेंद्री भाषि ।। स चारि बिनु हाड न होइ । बेइन्द्री लों जानें सोइ ||७६ || साहू में सम्मूर्छन गनो यौं कहि गए सकल गुनि गना ॥ तामें चौदस लख नर जाति । चारि लाख तिरयंच विख्यात ॥७७॥ साहू में करें परवीन । जलचर नभचर थलचर तीन || नमचर सब पनि पहिचानि । जलश्वर मीनादीक बर्षाांनि ॥७८॥ सर्प चतुष्पद पशु श्रोतार । ए सब थलचर नाम विख्यात ।। लाख चारि गति देवनि सनी । सोऊ चारि भेद करि सुनी ॥७६॥ भवनवासी कल्प जु दोइ । ज्योतिग व्यंतर सु होइ ॥ कल्पवासी स्वर्गति में रहें। सुखसों सकल श्रापदा है ||८|| दशविधि भवनवासी सुर जानि । पृथक पृथक गुण कहीं बखानि ३॥ पहलें असुरकुमार हें जोइ । दंड देहें नरकनि कों सोए ॥५१॥ नागकुमार दूसरे रहें । तिनिस भ्रष्ट कुली जग कहें । विद्युत बीजो नाम कहते । चपला दामिनि जो चमकत ॥ ८२ ॥ सुपर चौथो नाम बखान । अगनिकोल पंचम सुर जांनि ॥ षष्टम बात बखानी सही । जातें अधिक प्रबल बल मही २८३ ।। सप्तम संतति देव विचार । जो नम मंडल गर्जय सार | अष्टम श्रावध नाम जु धरी । जासों हैं बच्च भुवि पर्यो ।॥ ६४ ॥ नव दिव्य ध्वनि श्रदेव । दक्ष में दश दिगपाल गनेव ज्योसिंग देव तनो परिवार रवि शशि आदि पंच प्रकार ८५ ग्रह नक्षत्र तारांगन सुनो। ऊँचे वहीं ताहि अब भणों ॥ पृथ्वी ते जोबन से तात । और नहीं ऊंची अधिकात ॥१८६॥ रतन जटित ज्योतिगी विमान । तिनिकी ज्योति चमक परवान ॥ शशि विमान अंजन मनि ल । ताऽतिबिंब चन्द्रवपु ग्रहों ||७|| यह स्यामता निरष मति मंद । थाप्यो जगत कलंकी चंद || पंथ चलित श्राप पर घ । तिनि अर्गानि कोल मुद बिषै ॥ मरौ देव कुमति यों कहैं। और टरची तारी सब कहें ॥ राहु केतु ई ग्रह ए स्याम । निकट न हों रवि शशि के धाम || ८६ ॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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