________________
वचन कोश
सोरठा
दुर्लभ पर को भात्र, जाकी प्रापति नहीं ।
जो आपनो स्वभाव, सो क्यों दुर्लभ जानिये ॥६४॥
चौपई
जब जिय चरतें मध्य निगोव । दुर्लभ सप्तम नरक विनोद || जब प्रायें सातों पाथरे । एकेन्द्री दुर्लभ मन घरें ।। ६५|| एकेन्द्री यह करें सदीय । पानी तेज बाय के जीव । सात सात लाख परजाय । वनस्पति दश लाब गनाइ ।। ६६ ।। प्रथ्वी काइ सात लख जानि । चौदह लाख निगोद बखांन ॥ तामें इस निगोदी सात । उनिके दुषन की प्रगति बात || ६७ || ज्यों लुहार को सहसो माहि । कबहूं भगति कबहूं जल मोहि || सेव सात सय इतर निगोद । प्रव सुनि उनके दुष विनोद ||६|| सास उस्वास एक में सार । जामन मराठारह बार ॥ वायु तनी संख्या नहीं तास । एकेन्द्रो शरीर दुब रासि ।।६६॥ सब मिलि एकेन्द्री की जाति । थावर पंच प्रकार विख्यात || तामें मुब जल हरित जु तीन | कहैं प्रनंत काय परवीन ॥७०॥ मसूरी दारि तनें परमान रहे जीव तिनिके सुख मानि ।। * जो जीव होइ मरि कोक । तौ भरि उपलटें तीनों लोक ॥७१॥
सति इन्द्री दुर्लभ होइ । द्वे लख जाति तासु की जोइ ।। यो घास खुलासा पत्र डारि । लाट गडोई की उनिहारि ।। ७२ ।। रसना कोई इन्द्री गनी । श्री जिन धागें ऐसी मनी ॥
यातें इन्द्री दुर्लभ सीनि लख जाति ठीकतादीन ॥७३॥१ जोक मांकड बी आदि। देह नाक रसना की स्वाद ।। या चौइन्द्री गति दूरि लख जाति रही भरिपुर ।।७४ || बर डांस माखी रु और कांग । भृंगी भवरी कोट पतंग ||
रसना नाक प्राखि भदेह | चौइन्द्री को विवरण एहू || ७५ ||
६३