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कविवर बुलाखीचन्द बुलाकादास एक हेमराज
अपयकार शाययो । कार उत्सम र लया ।। सकल नरेश चले निज मेह । उपज्यो कोह प्रक्र्क के देव ।।५.३१५ प्रभु देषित क्यों सेवा करें। दीठ पनौं क्यों देषी परें । दयो निसान जुद्ध के काज । मेज खुद भमे तर आज ॥५४॥ तब मंत्रिनि मिसि यह बुधि दीन । पहले पटऊ दूत पान ।। मांगे देह जुद्ध भक्ति करी । नहिं तो मनचाछित पादरी ॥५५॥ पठयो दूत ततक्षिण तहो । जम कुमार बैठो महा।। दूप्त वचन सुनि वह परजरथी । मानो प्रगनि में पूलो परयो ।।५।। सुन रे दूत मूढ़ मति मंद । प्रविवेकी भयो प्रभु को नन्द । यह मरजाद पितामह तनी । तोरपी वाहत धरि सिरमनी ||५७॥ भरथ सुन दुर पावें धनौं । क्यों निज प्रमुता चाहै हन्यो। हम सेवा तोहि लो करें । जी लो नीति पंथ पग धरै ।।५।। लोप्यो चाहै जो इह रीति । तो मौसों महि सकि है वीति ।। वह नहि जानत हे बलवंत । पानें भरथ राय गुणवंत ॥५६॥ पर्वत मुफा फोरि मैं दर । भव छह खंड तनी जय मई ।। काहे हो राणों मग्यान । क्यों मिसि हैं नु वरी बलवान ॥६॥ दूत गयो फिर जहां कुमार । सुनि ता बचन भयो प्रसवार । योनि जुद्ध कीनो परचंड । जयकुमार तब दीनी दंग ।।६२॥ अर्ककुमार बघि ले गयो । करि विवाह निजु घर से गयो । ह्वां ते कुवर दो तब छोरि । भादर सों दयो सन्छ करोति ॥६६॥ भरथ निरघि मृत कीयो पिकार । करै सु पावें यह निार । जयकुमार को किसे पसाव 1 घ्य गम देशा बहुत सिर पाव ।।६।। राजनीति तुम कोन्ही सही । नतर कुवात विचरती मही ।। सेवक मृत सम जो जानि । जो प्रभु की भेट नहि प्रानि ।।६४॥ तक तें यह जग बरसी रीति । करें स्यम्बर नृप धरि प्रीति ।। नाहि वर सोही ले जाइ । फिरि न ताहि कोड सके सताइ ॥६५॥
इति स्यम्बर नोति वर्णन