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वचन-कोश
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तनुषा मम गृह भई अभिराम । सुलोचना ताको है नाम ॥४॥ भई बर जोग सुता वह ईश । देउ काहि भाषौ जनीश !i सब प्रभु भावो काल विचार । भाष्यो चर्स जयत यौहार ।।४२॥
या माई हो । एकीला की लेह ॥ जो चक्री सब परनतु जाइती कसे संसार घटाइ ॥४३॥
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स्वयम्बर वर्णन
मात पिता इच्छा गुण पोर । सबल मिबल परिकरि है शोर ।। ताते रच्यो स्वयम्बर जाइ। तहां सकल नप लेह बुलाय ||४४।। घरमाला कन्या को देउ ! पुत्री निज इन्छा बा लेह ॥ ताहि बरन कोऊ मानें बुरो । नाको मान मंग सब करो ॥४॥ इन मुनि भर परम गानंद । सापनीति भाषी बिनचन्द ।। सुनि राजा अपने घर गयो । प्रमु भाषी सो करती लयो ॥४६॥ देश देश के चाले राय । सुता स्यम्बर को ठहराय ।। प्रक्क प्रादि भरथ सुत चले । कंदर्प रूप विराचे भले ॥४॥ पौर सफल प्राये महिपाल । जिनदेखत नासे उरसाल ।। रचि विभूति अपनी सब तहां । प्राए सफल स्वयम्बर बहाँ ।।४।। कन्या के कर माला धई । माइ स्वयम्बर ठाड़ी भई ।। कन्या के संग दासी दीन । सबके गुण जानत परवीन ||४|| एक और तै बरनती चली । नाम राजजु स्तुत करि भली ।। भावी के बस पहुंची तहाँ । गजपुर पनौ विराबैं जहाँ ।।५०॥ भरथ सनो सेनापति सार । नाम तास है जयकुमार ।। रतिपति देषत रूप लजाइ । बल उनमान करो नहिं जाई ।।११।। कुरुवंशनि को नाथ प्रवीन । जाके राज न कोऊ दीन ।। सुलोचना देख्यो वह रूप । कंठ करि वरमास मनूप ॥५२।।