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कविवर बुधजन ! व्यक्तित्व एवं कृतित्व
(३) राजनीतिक तथा भौगोलिक परिस्थितियां । (४) सामाजिक परिस्थितियां।
यहाँ साहित्य शब्द का अर्थ संकुचित न होकर व्यापक है । उसके अन्तर्गत केबल सृजनात्मक साहित्य ही नहीं, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनैतिक सभी प्रकार का साहित्य है जो क्षणिक, सस्ता मनोरंजन न देकर शास्वत सत्य सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् का उद्घाटन करने में समर्थ होता है, वही सरसाहित्य है । "जैन साहित्य अध्यात्म-प्रधान साहित्य है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश', प्रान्तीय भाषाएं और हिन्दी में जो जन साहित्य माज प्राप्त है, उसका मूल स्वर अध्यात्म है । धार्मिक क्रान्तिकां साहित्य की दिशा सदा से बदलती रही हैं और ऐसा न साहित्य में भी हुमा है।"
एक बात जो ध्यान देने की है, वह यह है कि प्रायः एक ग्रंथ को लेकर हम यह नहीं कह सकते कि उसमें केवल राजनैतिक या प्राध्यात्मिक स्थितियों का ही विश्लेषण है । उस ग्रंथ में अन्य प्रकार की स्थितियों तथा तस्वों का विवेचन होता है । अतः हम समस्त सहर५ का वर्गीस, माननिता जिक, धार्मिक प्रादि रूप में न करके दूसरे प्रकार से करेंगे। यह वर्गीकरण समय तथा प्रवृत्ति दोनों के विचार से होगा ।
संस्कृति से सम्बन्धित समस्त साहित्य को हम निम्न वर्षों में बांट सकते हैं। [१] वैदिक-साहित्य । [२] लौकिक साहित्य ! [३] पौराणिक-साहित्य । [४] स्तोत्र-साहित्य । [५] दर्शन-साहित्य । [६] पुरुषार्थ-साहित्य । [७] सृजनात्मक-साहित्य ।
जिस दिन हम प्राचीन भाषाओं में निबद्ध साहित्य को भूल पायेंगे, उसी दिन से हमारा पतन होने लगेगा। संस्कृति क्या है ? धर्म क्या है ? और उनका दैनंदिन के जीवन में कैसे उपयोग हो सकता है, इत्यादि बातों का बोध हमें प्राचीन साहित्य से ही होता है। इससे हमें मानसिक तृप्ति तो मिलती ही है, साथ ही शास्वत सुख और उसकी प्राप्ति के साधनों का बोध भी हमें इसी साहित्य से होता है ।
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जन डॉ० रवीन्द्रकुभार : कविवर बनारसीदास जीवनी और कृतिस्त्र, पृष्ठ ४६, भारतीय ज्ञानपीठ काशी प्रकाशन ।