________________
कविवर गुभान : जानिस र हतिद
प्रगट करते हुए लिखते हैं---यदि इसके हिन्दी पद्यानुवाद में श्रुटियां हों तो विजन मूल ग्रन्म का अवलोकन कर शुद्ध कर लें।" "कवि के समय में जयपुर के शासक सवाई रामसिंह थे । कवि ने यह रचना प्रासोज सुदी दशमी गुरुवार बि. सं. १८६२ में पूर्ण की थी।" जयपुर से प्रकाशित मासिक पत्रिका "हितैषी" से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि "बुधजन" ने अपने जीवन काल में दो सासकों का शासन काल जयपुर में देखा था।
१३. वर्द्धमान पुराण सूचनिका वि० सं० १८६५ ८ वढं मान पुराण सूचनिका [वि० ० १८९५]
____ यह कधि की अन्तिम रचना है । इसमें तीर्थकर महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया गया है । पुरवा भील की पर्याय से महावीर की पर्याय तफ इस जीव ने जो-जो प्रमुख पर्यायें [३३] प्राप्त की उनका सप्रमाण क्रमबद्ध वर्णन है । इस लघु कृति में केवल ८० पद्य हैं। रपना के अन्त में कवि ने अपना नाम व रचना काल का उल्लेख किया है।
सकल कीर्ति मुनि ने संस्कृत भाषा में "वर्द्धमान पुराण सूचनिका" ग्रन्थ की रचना की थी। उसी की गद्यात्मक हिन्दी वनिका पढ़कर तथा उसी से कम भाग लेकर मेरी बुद्धि उसे पाबद्ध करने की हुई इसे मैंने वि० सं० १८६५ में प्रगहन कृष्णा तृतीया गुरुवार को पूर्ण किया ।
टोकारची संस्कृप्त वानी, हेमराज वननिका पानि ॥५७७॥ करें सम्यक्त्व मिश्यास्व हरें, भगसागर लोला ते तर ।। महिमा मुख से कही न जाय, 'बुधजन' बन्ने मनवयकाय ॥२७॥ सांगही अमरचंद बीवान, मोक' कहो यावर मान । मन्द अर्थ यो मैं लह.यो, भाषा करन तवै उमगयो ||५७६॥ कवि बुषजम : पंचास्तिकाय भाषा, पश्च संख्या ५७७, ५७८, ५७६ । भक्तिप्रेरित रचना प्रानी, सिखो पढौ वांचो भषि कानी । जो कछ यामें प्रमुख निहारो, मूल ग्रंथलखि ताहि सुधारो।। कवि बुषमम : पंचास्तिकाय भाषा, पद्य संख्या ५०० । रामसिंह भूप जयपुर बसे, सुदि मासोज गुछ दिन बसें । उगरगोस में घदि है माठ, ता विवस में रस्मो पाठ ।। कमि दुधजन : पंचास्तिकाय भाषा, पत्र संख्या ॥११॥ सकल फीति मुनिरच्यो, वनिका ताफी बाँची । सर्व ईव को रखन, सुद्धि "सुषमन" की रांची ।।