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कविवर बुधजन : ध्यक्तित्व एवं कृतित्व
मिध्यादर्शन, मिथ्याज्ञान एवं मिथ्याचरित्र के स्वरूप का वर्णन है । इन तीनों को छोड़ने एवं सम्यग्दर्शन, सम्परमान, सम्यकचारित्र को अपनाने की प्रेरणा है। तृतीप दाल में प्रात्मा का सुख बतलाकर उसके उपाय रूप से सम्यग्दर्शन का सांगोपांग निरूपण है और इसे ही धर्म का मूल कहा है । चतुर्थ हाल में व्यवहार सम्यादर्शन, सम्पपज्ञान एवं सम्पक चारित्र का वर्णन है। इसमें मुख्यतः सम्यक्त्वा श्रावक के विश्वास का वर्णन है । पांचवीं काल में जगत्-काय एवं भोगों से विरक्त होने के लिए मारह भावनाओं का वर्णन एवं उनके चिंतन करने का उल्लेख है। इसमें अणुवृत्ती धावक की दैनिक चर्या तथा उसके नतों व जीव मोक्ष-माप्ति की मोर किस प्रकार अग्रसर होता है-इनका वर्णन है । छठी बाल में मुनि पर्म एवं स्वरूपाचरण-बारित्र का पर्णन है एवं जीवों को परम पद की प्राप्ति का उपाय बताया है। समय एसे अपना कल्याण कर लेना चाहिए ऐसी शिक्षा जीवों को दी गई है।
५- बुधजन कृत छहताला की अपेक्षा दौलतराम कुत छहढाला का वर्णन कम
अधिक व्यवस्थित है, क्योंकि इसमें पहले चतुर्गति के दुःखो का वर्णन है तथा चतुर्गति में भ्रमण के कारण मिथ्या दर्शन, मिथ्याज्ञाम, मियाधारित्र का वर्णन है ।
बुधजन कृत छहकाला में मोक्ष के कारण प्रत स्नाय का उस्लेख है। तथापि उसमें सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान का संयुक्त माप से एवं सम्माचारित्र
का पृथक से वर्णन किया गया है । ७- दोनों कवियों की रचनाओं में केवल दो आन्दों को छोड़कर शेष में पूरा-पूरा
साम्य है । छन्दों की तालिका निम्न प्रकार है:
बुधजन कृत छहवाला के छन्द
दौलतराम कृत छहवाला के छन्द
प्रथम हाल में-चौपाई छन्द द्वितीय दाल में- जोगीरासा छन्द तृतीय ढाल में-पद्धडि छन्द पसर्थ हाल में - सोरठा छन्द पंचम ढाल में-चाल छन्द षष्ठ हाल में--प्रोजगत् गुरु की चाल
प्रथम द्वाल में--चौपाई छन्द द्वितीय हाल में-पद्धडि छन्द तृतीय हाल में जोगीरासा
बसुध हाल में होला पांचवीं हाल में-चाल छन्द छठी हाल में हरिगीतिका
८- बुधजन कृत "छहढाला' में जैसा मात्म-उद्बोधन है, वसा दौलतराम कत
"यहहाला" में नहीं मिलता । उदाहरण के लिए