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बुघजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
की योग्यता नहीं है । प्रतः विद्वान पाठक मुझपर दया करें।
रचना के अन्त में कविवर बुधजन रचनाकास का उल्लेख करते हुए कहते हैं :
__ मैंने यह रचना वि० सं० १८३५ चैत्र शुक्ला चतुर्थी, शनिवार को पूर्ण की प्रस्तुत रचना बुद्धजन विलास में संग्रहीत है।
२. विमल जिनेश्वर की स्तुति वि. सं. १९५०
कविवर बुधजन की यह एक अत्यन्त लघुकाय रचना है। जैन मान्यतानुसार धर्म के प्रबल प्रचारक चतुविशति तीर्थकर माने गये है। उनमें एक नाम विमलनाथ का है । अत्यन्त भाव-विभोर हो कवि विमल जिनेश्वर की स्तुति करते हुए कहते हैं:
हे विमल जिन ! मैं आपके चरणों का ध्यान करता हूँ । मैं पागम के प्रनुसार वर्णन करता हूँ। पर आपके गुणों का वर्णन तो बड़े-बड़े इन्द्र, नरेन्द्र, फणीन्द्र प्रादि भी करते हुए नहीं अघाते फिर मेरी तो सामर्थ्य ही क्या है ? हे प्रभु ! प्राप राजपुत्र हैं । पर युवावस्था को प्राप्त होते ही प्रापने दीक्षा पारण की । कुछ समय बाद भम्पको पूर्ण ज्ञान (केवलज्ञान) की प्राप्ति हुई। पश्चात् उत्कृष्ट ध्यान के बल पर प्रापने सम्मेद शिखर (पार्श्वनाथ-हिल) पर्वत से मुक्ति प्राप्त की। आपकी बहिरंग विभूति तो अपार थी पर आपका मन उसमें नहीं रमा व मापने ध्यान के बल पर अपनी अन्तरंग विभूति (अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनंत' सुख, अनन्त बस) प्रगट कर ली । धन्य है ! वह सम्मेद शिखर पर्वत जो आपके घरण स्पर्श से तीर्थ बन गया ।
१. दग्दों भषि मंदिर जिन, अन कोन प्रति भारणे दी।
वरण प्ररथ बल व होन, क्या धरो मुनि अप करि छीन ॥ बुधजनः, खुमलन विलास-नंबीश्वर जयमाला, पच स. १६, पृ. स. २६ हस्तलिखित प्रति से। द्वारासे पैतीस को साल बौषि यानिवार | संत जन्म जपमाल को, वीचन्द हियबार ।। अपचन , अषजन विलास, (नंदीश्वर जयमाला) पम सं. २० पृ. संक्पा २६ हस्तलिखित प्रति से ।