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१. नंदीश्वर जयमाला वि.सं. १९३५
जम दर्शन के अनुसार
इस पृथ्वी पर असंख्यात द्वीप समुद्र हैं । ढाई द्वीप तक मनुष्यों का निवास है । उसके पागे मनुष्यों का मन नहीं हैं । पाठवें तीए का नाम नंदीश्वर द्वीप है । यहां पर प्रकृत्रिम जिन चैत्यालय व उनमें प्रकृत्रिम जिन प्रतिमाए हैं। वहां पर अष्टान्हिका पर्व में धार्मिक प्रकृति के देव-देवियों जिनेन्द्र प्रतिमानों की भक्तिभाव से पूजा करते हैं । चौसठ लाख, इत्यादि अनेक जाति के देव वहां जाकर पूजा करते हैं।
यह नंदीश्वर द्वीप नंदीएवर समुद्र से वेष्टित है। इस द्वीप का विस्तार १६३८४००००० एक सौ सठ करोड़ चौरासी लाख योजन है । इस द्वीप की बाह्य परिधिः दो हजार बहसर करोड़ ततीस लाल चौवन हजार एक सौ नब्बे योजन है। इसकी पूर्व दिशा में अंजनगिरि पर्वत है । एक अंजन गिरि, चार दधिमुख, पाठ रतिकर इन तेरह पर्बतों के शिखर पर उत्तम रत्नमय एक एक जिनेन्द्र भवन स्थित है । ये मन्दिर १०० योजन लम्बे, ४० योजन चौड़े, ७५ योजन अचे हैं । इन जिन मंदिरों में देवतागण जल गंध, अक्षत, पुष्प प्रादि द्रव्यों से बड़ी भक्ति से पूजा, अर्था, स्तुति प्रादि करते हैं। पूर्व दिशा की भांति शेष तीन दिशात्रों में स्थित पर्वतों पर भी इसी प्रकार प्रकृत्रिम जिन मंदिर है व उनमें प्रकृत्रिम जिन प्रतिमाए विराजमान हैं।
कविवर बुधजन भक्तिपूर्वक इन प्रकृतिम जिन चैत्यालयों की वंदना करते हुए अपनी लघुता प्रगट करते हैं
"मैं मंदमति उन प्रकृत्रिम जिन चैत्यालयों की बंदना करता हू मुझ में वह शक्ति नहीं है कि मैं उन का विस्तृत वर्णन कर सकू। मुझ में सुन्दर छन्द निर्माण