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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
६. देहावसान एवं विशिष्ट व्यक्तित्व "यदि हम किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विश्लेषण करना चाहते हैं तो यह आवश्यक होगा कि उसकी कार्य-प्रवृसियों का हमें पूर्ण ज्ञान हो। क्योंकि व्यक्ति के विचार उसकी विभिन्न विषयों में लगने वाली प्रवृत्तियां एवं करने योग्य कार्यों का समूह ही व्यक्तित्व है। विचारों से हमें व्यक्ति के हृदय का ज्ञान होता है
और प्रवृत्तियों से उसके चरित्र का बोध होता है। जैन विद्वानों ने जन सांस्कृति के संरक्षण में प्रभूतपूर्व योगदान दिया है और यह प्रावश्यक भी है क्योंकि संस्कृति के बिना कोई जाति जीवित नहीं रह सकती।"
"कविवर पजन" के व्यक्तिरस का मानदण्ड है उनका प्राध्यात्मिक प्रेम, सहिष्णुता, उदारता एवं निर्माणात्मक कार्यों के सम्पादन की समता । मैंने कवि के इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर एवं स्वयं यह जानकर कि भापकी "वेष दर्शन स्तुति" जिसका प्रारम्भ प्रभु पतित परब्रम" से होता है, एक अत्यन्त भावपूर्ण स्तुति है। कवि की यह छोटी-सी स्तुति समग्र जैन समाज में अत्यधिक प्रसिद्ध है। इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि यह समाज के आवाल बद के कंठ पर है। शायद ही ऐसा कोई जैन बालक या बालिका होगी जिसे "बुधजन" की मह स्तुति कंठस्थ न हो।
"कविवर बुधजन की सफलता का कारण, उनकी निःस्वार्थ सेवा और परोपकारशीलता का भाव है-धम नहीं। वे परम नैविक और धर्मस्मा व्यक्ति थे। बड़ी ही पढ़ता के साथ श्रावकाचार का पालन करते थे। वे अत्यन्त ही सादे किन्तु सबल व्यक्तित्व के धनी, बहु शास्त्रविद, प्रतिभाशाली, विद्वान, गंभीर प्रकृति के गहन अध्यात्मिक विचारक, मात्मानुभवी और प्रात्म-निष्ठ के रूप में प्रतिष्ठित
___ कविवर का देहावसान जयपुर नगर में कि० सं १८६५ के बाद हुमा, क्योंकि १८६५. के बाद की उनकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है। कृतियों के माधार पर कवि का साहित्यिक जीवन ६० वर्ष निश्चित होता है ।
1. पं. कैलाशचा सिद्धान्त शास्त्री : गुरुखोपासास परैया स्मृति नप, ० म०
दि. जैन विद्वत परिषद सागर, मंत्र कृष्णा १२ वि.सं. २०३३।