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जीवन परिचय
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कवि की अन्तिम रचना "योगसार भाषा" है । इसका रचना काल वि० सं० १८६५ श्रावण शुक्ला तृतीया मंगलबार है । यह कवि की अन्तिम रचना प्रतीत होती है क्योंकि इसके बाद की कोई रचना उपलब्ध नहीं है । ग्रन्थ की प्रशस्ति में कवि ने रचना काल का उल्लेख इस प्रकार किया है :
ठारासो पिचानवे संबत सावन मास ।
सौज शुक्ल मंगल विषस, भाषा ई प्रकाश ।। डा नेमीचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य पारा ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा" भाग-४ में बुधवन का साहित्यिक-जीवन वि० सं० १८७१ से वि० सं० १८६२ तक स्वीकार किया है। यह संभवत: इसलिए कि डॉ. शास्त्री ने कवि की सम्पूर्ण रचनामों के प्रबलोकन की कृपा नहीं की। उन्होंने कवि की केवल ६ रचनाओं का ही उल्लेख किया है, जबकि कवि' की अब तक १७ रचनाएं उपलब्ध हैं। कविवर की छहवाला की रचना वि० सं० १८५६ में हो चुकी थी। इसके पूर्व ही वि० सं० १८५० में विमल जिनेश्वर की विनती रची गई थी। स्वर्य कविवर के शब्दों में :--
द्वारा सं पंचास माह सुदि पुरन मासी।
बुधजन को मरवास, की सुरपुरवासी ॥ यह विनती "बुधजन विलास" में संग्रहीत है। वि. सं. १८७१ में जिनोपकार स्मरण स्तोत्र (पाना २०) वि० सं० १८६६ में दोषबावनी (पाना २१)
इसके भी पूर्व वे विसं. १८३५ में नग्बीश्वर जयमाला की कषिवर रचना कर चुके थे।
उनकी एक रचना और उपलब्ध है, जिसका नाम "वंदना जखड़ी" है । इसमें रचना काल का बल्लेख नहीं मिलता, तथापि इसका रपना काल वि० सं० १९५५ मनुमानित है।
"इष्ट छत्तीसी" यह भी कवि की सुन्दर रचना है। इसमें पंच परमेष्ठी के गुणों का स्मरण किया गया है । इसमें रचना काल का उल्लेख नहीं है।
_ इस प्रकार कविवर बुधजन की १७ रचनाएं उपलब्ध हैं। अतः कविवर बुधजन का साहित्यिक रचना काल वि० सं० १८३५ से १८६५ तक रचनाओं के प्राधार पर निश्चित होता है ।
१. मुधजन : योगसार भाषा : गुटका संख्या २९६१ पृ.सं. १७, मामेर
शास्त्र भण्डार, जयपुर।