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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व दिया था । उरकी रचनाओं में जीयन में घटित दैहिक, दैविक, भौतिक विपत्तियों मा अन्य किसी घटना का उल्लेख नहीं मिलता है ।
अनेक जर कवि ऐसे हुए हैं जो एक और संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश एवं हिन्दी के विशिष्ट विद्वान थे, सिद्धान्त और तर्कशास्त्र के पारगामी थे, तो दूसरी ओर सहृदय भी कम न थे। उनका काव्य उनकी सहृदयता का प्रतीक है । बुधजन कवि की गरगना भी ऐसे ही कवियों में की जाती है ।
बुधजन का सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन अन्य साहित्यकारों एवं विद्वानों की भांति विवाद-ग्रस्त नहीं रहा, बे हिन्धी जैन साहित्य के निबिवाद पृष्टा थे । उन्होंने जिस द्दारी भाषा को अपनी रचनामों का माध्यम बनाया, वह हिन्दी के अत्यन्त निकट है, केवल क्रियापदों में थोड़ा सा परिवर्तन करने पर वह हिन्दी के प्रत्यन्त निकट ही है।
कषि की रचनाओं में एवं उनके व्यक्तित्व से यह स्पष्ट है कि वे पं. बनारसीदास एवं टोडरमलजी के बाद अन्य जैन साहित्यकारों में अपना विशेष महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । कवि की कुछ रचनाएं तो इतनी विस्तृत हैं कि उनपर स्वतन्त्र रूप से बहुत कुछ लिखा जा सकता है। उनके समय में हिन्दी साहित्य के पूर्ण वैभव का विकास हो रहा था। कवि के जीवन का बहुभाग जयपुर में व्यतीत हुआ, जयपुर उस समय अध्यात्म-विद्या का प्रमुख केन्द्र था, अत: स्वभावत: कवि के जीवन पर अध्यात्म विद्या की छाप थी 1
४. कवि की धार्मिक वृत्ति वास्तव में जयपुर में अनेक साहित्यकार हुए हैं और इसके लिए जयपुर अपना एक विशेष स्थान रखता है। कविवर बुधजन बचपन से ही अध्यात्म-रस की कविताएं लिया करते थे । वे सदा स्वाहिल्य-चिंतन में लीन रहा करते थे, पर माज हमें उनके जीवन की रूपरेखा भलीभांति ज्ञात नहीं हैं। संभव है "कविवर बुघजन" प्रात्म-परिचय लिखना नहीं चाहते हों। इसमें उन्हें अभिमान की गंध मालुम हुई हो, लेकिन इससे उनकी महानता में कोई कमी नहीं पाती। वे एक लन्ध-प्रतिष्ठ कवि थे, उन्होंने जितना ही हमसे दूर रहने का प्रयत्न किया है, उनके अमर-काव्य ने उन्हें उतना ही अधिक हमारे सम्पर्क में ला दिया है। वे शांति के एक सच्चे उपासक थे और इसीलिए उन्होंने कषिताएं की। इसमें न तो आपका कोई प्रदर्शन है और न बाह्य आडम्बर हो । वे चिरशांति स्थापना के पोषक थे । उन्होंने शांति की रूपरेखा बड़ी ही विलक्षणता से अंकित की है।
कत्रिवर बुधजन चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राध्यात्म-रस फा रसिक बने । कविवर चितनशील व्यक्ति थे और सदा मनन-चितन करते रहते थे। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का साक्षात्कार करने का उनका प्रयत्न' था। उनमें अनुभूति की तीन ध्यंजना थी। अनुभूति की तीव्र अभिव्यंजना ही कविता है ।