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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
"पं नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार कवि का वंश परिचय निम्न
:
प्रकार है"
(१) निहालचन्द जी
दुस जी
(१) गुलाबचन्दजी, (२) अमीचन्दजी, (३) भदीचन्दजी, (४) श्योजीरामजी, (५) गुमानोरामजी, (६) भगतरामजी ।
अमरचन्दजी
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मोतीलालजी
शोभाचन्द्र जी
1 पूरणमल जी
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सोनजी
1 फूलचन्द्रजी
१.
दीवान अमरचन्दजी की आज्ञा से श्रापने जयपुर में दो जिन मन्दिरों का निर्माण कराया था जो कवि की श्रमर-कीर्ति का गान कर रहे हैं । कवि की पवित्र विगता उनके मन्दिरों की दीवाल पर अंकित "मोहतोड़" "विषयछोड़", समयपाय चेतभाई से जानी जा सकती है । उस समय जयपुर में छह हजार जैन तथा
४ हजार अन्य जातियों के घर थे। कवि ने अपने जीवनकाल में जयपुर में महाराजा सवाई जयसिहजी (तृतीय) एवं महाराजा रामसिंह का शासन काल देखा था ।
कविवर बुधजन, जिस समय जयपुर में रह कर साहित्य साधना कर रहे थे, उस समय जयपुर नगर "सवाई जयपुर" के नाम से प्रसिद्ध था । उसका दूसरा नाम " तू काहड" भी था । वास्तव में ढूंढाड़ एक देश था और जयपुर उसका मुख्य नगर । उसके एक भाग में "डूंढाणी" भाषा चलती थी। जयपुर में उसके बोलने वालों की संख्या पर्याप्त थी। कुछ कवियों ने उस नगर को ही "दू ठाहड़"
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प्रेमी, नाथूराम (सं०) युधजन सतसई प्रस्तावना हिन्दी ग्रंथ कार्यालय, बम्बई ।
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