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________________ कविवर बुधजन व्यक्तित्व एवं कृतित्व इसी प्रकार दिल्ली में भी एक गोष्ठी थी, जो सुखानन्द की सली कहलाती थी। कविवर यानतरायजी ने इस गोष्ठी के माध्यम से अपनी काव्य-शक्ति बढ़ाई जयपुर में तेरापंथी सैली थी, जिसके पं. टोडरमलजी भादि अनेक सुप्रसिद्ध विद्वान सदस्य रहे थे। कविवर बुधजन ने इसी सैली के माध्यम से अपनी काव्य-प्रतिभा को विकसित किया और उच्चकोटि के सुकयि बन गये । १८ साहित्य-सृजन की दृष्टि से उत्तर भारत में उस काल में जैनों के प्रमुख केन्द्र गुजरात, दिल्ली, आगरा और जयपुर थे । संस्कृत, हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं में साहित्य-सृजन चलता रहा। किन्तु उसमें गद्य एवं पद्य के हिन्दी साहित्य इस डेढ़ की ही बहुलता रही और उसकी रचना में जयपुर केन्द्र सर्वाग्रणी रहा । सौ वर्ष के अराजकता काल में ५०-६० जैन कवियों एवं साहित्यकारों के नाम मिलते हैं, जिनमें लगभग एक दर्जन पर्याप्त महत्वपूरणं हैं । कविवर वजन के समय में आचार्यकल्प पं. दोडरमल की विशेष ख्याति थी। उनकी पूर्व साहित्यिक सेवाओं के कारण जयपुर भारत का प्रसिद्ध साहित्यिक केन्द्र बन चुका था, अतः कविवर बुधजन भी स्वतः उधर मुड़ गये । यद्यपि कविवर बुधजन ने अपने विषय में विशेष कुछ नहीं लिखा है, किन्तु "बुधजन सतसई" की अंतिम प्रशस्ति से संकेत मिलता है कि "जिस प्रकार नायकों के मध्य में सरपंच होता है उसी प्रकार ढूंढार प्रदेश के मध्य में जयपुर नगर था। वहां का राजा जयसिंह था जो इन्द्र के समान था और वह प्रजा का हित करने वाला था 11 राजस्थान राज्य का इतिहास देखने से ज्ञात होता है कि कविवर बुधजन ने अपनी प्रसिद्ध कृति "बुधजन सतसई" में जिस जयपुर के शासक सवाई जयसिंह का नामोल्लेख किया है वह सवाई जय सिंह तृतीय थे। उनका शासन काल १८७६ से १८६२ तक था कवि का जीवन काल भी वि. सं. १८२० से १८६५ तक का रहा है । कवि की रचनाएं भी वि. सं. १८३५ से १८६५ तक की उपलब्ध हैं । श्रतः स्पष्ट है कि कवि ने सवाई जयसिंह की जो प्रशंसा की है वह सही है, क्योंकि कवि के समय में (सवाई जयसिंह) तृतीय जयपुर के शासक थे । २. अनुश्रुति एवं ठांश परिचय कविवर बुधजन के पूर्वज पहले आमेर में रहते थे, जो जयपुर के पूर्व राजस्थान की राजधानी थी। वहां जब जीवन निर्वाह में कठिनाई होने लगी, तो वे १. मधिनायक सरपंच क्यों, जैपुर मधि द्वार । नृप नर्यासह सुरिव तह पिरजा को हितकार ॥ कवि बुधजन : बुधजन सतसई : अन्तिम प्रशस्ति पृ. ५२ संपादक पं. नाथूरामजी प्रेमी हिन्दी प्रत्य रश्माकर कार्यालय, बम्बई ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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