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________________ F तुलनात्मक अध्ययन १६६ से १७०० तक माना गया है ।" परन्तु यदि हम जंन हिन्दी साहित्य का भली भांति अवलोकन करें तो हम पायेंगे कि हिन्दी को जैन भक्तिपरक प्रवृत्तियां वि० सं० ६६० से १२०० तक चलती रही । हो! इतना अवश्य है कि इसका विकास १४ शताब्दी तो जैन भक्ति के पूर्ण यौवन का काल था । १५ वीं शताब्दी से १९ वीं शताब्दी तक के ४०० वर्षों के काल में जैन भक्त कवियों ने भक्ति सम्बन्धी रचनाएं की जो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।" माचार्य शुक्ल ने इन जैन भक्ति की रचनाओं का अवलोकन करने की कृपा नहीं की होगी इसीलिये उन्होंने १४०० से १७०० तक के काल को भक्ति काल स्वीकार किया । इस काल में भक्ति की धारा अत्यधिक पुष्ट हुई। जैन कवियों ने भक्ति विषयक रचनाएं कर हिन्दी साहित्य की धारा को समृद्ध बनाया है। जैन कवियों अनंत एवं सिद्ध दशा में स्थित मात्माओं को अपना आराध्य माना है। अरहंत दशा को हम सगुण एवं मुक्त या सिद्ध दशा को निर्गुण कह सकते हैं। अतः जैन साहित्य में सगुण व निर्गुण इन दोनों ही को भक्ति की गई है। इन्हीं को जैन कवियों ने अपना श्राराध्य माना है । इनकी श्राराधना करने से हमारी परिनि शुद्ध होती है । श्रतः इन्हीं को आलंबन मानकर जैन कवियों ने भक्तिपरक भनेक रचनाएं की क्योंकि उनका विश्वास था कि इन्हीं के गुणों से प्रेरणा पाकर यह जीव मिथ्यात्व भाव को दूर करने का प्रयत्न करता है । आत्मा की शुद्ध दधार का नाम ही परमात्मा है । प्रत्येक जीवात्मा कर्मबन्धन से बिलग होने पर परमात्मा बन जाता है । भतः अपने उत्थान और पतन का दायित्व स्वयं अपना है अपने विचारों एवं कार्यों से जीव बंधता है और अपने ही विचारों एवं कार्यों से बन्धनमुक्त होता है । ईश्वर की उपासना करने से साधक की परिणति स्वतः शुद्ध हो जाती है । जैन भक्त कवियों ने अपनी भक्ति-परक रचनाओं में अपने प्राराध्य को वीतराग माना है। उन्होंने अपने आराध्य से सांसारिक पदार्थो की याचना कभी नहीं की । उनकी स्पष्ट मान्यता रही है कि निर्विकार होने से ईश्वर किसी को कुछ देता-लेता नहीं है। अपने किये कर्मों का फल प्रत्येक जीव को स्वयं भोगना पड़ता है क्योंकि कर्मों का कर्त्ता या भोक्ता जीव स्वयं है । इस प्रकार की भक्ति भावना से रचना की है। अवतारवाद जैन प्रेरित होकर ही जैन कवियों ने भावात्मक पदों की भक्त कवियों को स्वीकार नहीं । १. २. रामचन्द्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास पृ० काशी नागरी प्रचारिणी सभा, संवत् २००३ वि० प्रेमसागर जैन हिन्दी जैन भक्तिकाल और कवि भूमि का पू० १३ भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन |
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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