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________________ १६८ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सतसंग की महिमा बता रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि संसार में मनुष्यों को जो श्रावर प्राप्त होता है वह सत् संगति के कारण ही प्राप्त होता है । शिल्पी के कर स्पर्श से बजता हुआ मुरज क्या कुछ अपेक्षा करता है ? अर्थात् नहीं । उसी प्रकार तीर्थंकर प्राणिमात्र के हित का उपदेश देते हैं । तीर्थंकर की दिव्यध्वनि का खिरता लोक मंगल हेतु है । उसी परम्परा को जंनाचार्यो एवम् जन कवियों ने निभाया | बुधजन ने भी उसी परम्परा का निर्वाह किया है। पूर्व परम्प नुसार अपने ग्रन्थों के प्रारम्भ में अरहन्तों और सिद्धों की भक्ति की है। प्राज भी वही परंपरा प्रचलित है । आज भी जैन पाठ शालाओं में 'क' नमः सिद्धेभ्यः' का पाठ प्रारम्भ से पढ़ाया जाता है । संगति ही है क्योंकि सत् का अर्थ होता है परमात्मा इसलिये सत्संग हुआ ब्रह्म साक्षात्कार । सत् का दूसरा अर्थ है सज्जन, इसलिये सत्संग का हुआ सज्जनों का संग उहोता है। इसलिये सत्संग का अर्थ हुआ ग्रन्थावलोकन, तीर्थ सेवा मादि सद्विषयों की भोर प्रवृत्ति । "मुषजन" का विचार है कि सज्जनों का प्रभाव हमारे हृदय में अवश्य ही वृद्धि करता है। इसके लिये दो बातों की बड़ी आवश्यकता है । एक तो (वंशग्य के प्रधान आधार) दूसरे पुण्य पुंज की (धर्माचरण की । । यह सत् का अर्थ 1 श्रद्धा की विवेक की तुलसीदास जी भी कहते हैं कि पुण्यपुंज के बिना तो संतों का मिलना ही संभव नहीं और विवेक के बिना उनकी परख होना कठिन है । इस प्रकार विभिन्न विद्वानों, संतों एवं दार्शनिकों ने सत् रूपी परमतत्व के अनुभव करने वाले ( सम्यग्दृष्टि) जीवों को संत माना है और इसी कारण गृहस्थ होते हुए भी मैं कविवर बुधजन को संतों की श्रेणी में गिनता हूँ । अपनी इस मान्यता की पुष्टि में मैं प्राचार्यं परशुराम चतुर्वेदी का कथन प्रस्तुत करता हूँ : १. "अतएव " संत शब्द इस विचार से उस व्यक्ति की ओर संकेत करता है। जिसने सत् रूपी परमतत्व का अनुभव कर लिया हो और जो इस प्रकार अपने व्यक्तित्व से ऊपर उठकर उसके साथ तद्रूप हो गया हो । जो सत्य स्वरूप नित्य सिद्ध वस्तु का साक्षात्कार कर चुका है अथवा अपरोक्ष की उपलब्धि के फलस्वरूप प्रखंड सत्य में प्रतिष्ठित हो गया है, वही संत 1 | " ७ बुधजन का भक्तियोग "आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार हिन्दी का भक्तिकाल वि० सं० १४०० प्राचार्य परशुराम चतुर्वेदी : उत्तरी भारत की हात परंपरा, पृ० संख्या ५ द्वितीय संस्करण, संवत् २०२१, भारती भंडार, लीडर प्रेस, इलाहाबाद
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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