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________________ तुलनात्मक अध्ययन १४७ (६) निर्मरातत्व पूर्व कर्मों को घोड़ा-थोड़ा नष्ट करना निर्जरा है । यह दो प्रकार की हैअविपाक और सविपाक । पक्ति प्रगने पुरूपार्थ से अपने संचित कर्मों को उदयावस्था को प्राप्त हुए बिना ही न2 कर सकता है । इ मदर पूर्वक हाती ई. संवर पूर्वक सम्पन्न होने वाली निर्जरा ही मुक्ति का कारण है। इसे अविषाक निर्जरा कहते हैं। कर्मों की स्थिति पूरी होने पर जब वे उदय में माते हैं और उनका फल भोग लिया जाता है तब निजी हो जाते हैं, वह सविपाक निर्जरा है । ये घोनों भेद भाव निर्जरा और द्रव्य निर्जरा दोनों में ही अन्तर्भूत हो जाते हैं । (७) मोक्षतस्य "समस्त कर्म बन्धनों का प्रामा से पृथक् हो जाना मोक्षतत्व है! 1" प्रात्मा का जो परिणाम राभी कर्मों में क्षय में हेतु है, यह परिणाम भावमोक्ष कहलाता है और श्रात्मा से सर्व कर्मों का क्षय हो जाना द्रव्य मोक्ष है । इस प्रकार मोक्षसत्य के भावानव एवं द्रव्यानव ऐसे दो भेद हैं ।। कर्म-सिद्धान्त समस्त लोक में कर्मवर्गणा जाति के असंख्य सूक्ष्म परमाणु (Matter) भरे। हए हैं जिनमें फलदान करने की शक्ति है जीवात्मा का स्वभात्र निश्चल और निष्कंप रहने का है किन्तु जिस समय वह मन वचन काय के द्वारा अपने स्वभाव के विपरीत कुछ भी क्रिया करता है तो उसके प्रात्म-प्रदेशों में हलन-चलन की क्रिया होती है । जीवात्मा में होने वाले इस प्रस्वामी कम से लोक में भरे हुए कर्म प्रदेश उसी प्रकार प्राकर्षित होते हैं जिस प्रकार प्राग में तपा हुआ लोहे का गोला पानी में पड़ जाने पर पानी को भी अपनी ओर खींचता है । इस प्रकार फर्म वर्गणलए प्रात्मा में प्राती तो हैं किन्तु यदि प्रात्मा में क्रोध, मान, माया, स्लोभ, कषाय रूप गोंद विद्यमान होता है तब तो वे यहां प्राफर चिपक जाती है (एक क्षेत्राचगाही हो जाती है, अन्यथा वहां से निकलकर चली आती है। कषाय तेज होगी तो कर्मवर्गणाएं अधिक समय के लिये बंधेगी। इस प्रकार पुद्गल कर्म-वर्गसानों द्वारा फल का दिया जाना, ईश्वर या एमराज या धर्मराज मी विसी शक्ति का फल से सम्बन्ध म बतलाकर कर्म सिद्धान्त को वैज्ञानिक रूप में उपस्थित करना कविवर सुधजन की बहुत बड़ी विशेषता थी। कवि ने प्रात्मा के साथ बंधने वाले कर्मों की स्थिति ४ प्रकार की मसलाई है। १ प्रकृतिबंध, २ प्रदेशबंध, ३ स्थितिबंध और ४ अनुभागबंध । बच्छ को प्राप्त १. पूज्यपाद प्राचार्य : सर्वार्थ सिद्धि, अध्याय १, सूत्र ४ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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