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________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्राकाश अनन्त प्रदेशी है । इसके दो भेद हैं—लोकाकाश और अलोकावाण । कुछ दार्शनिकों ने दिशा को स्वतंत्र द्रव्य माना है परन्तु जैन दार्शनिकों ने दिक् द्रव्य का अनार्भाव आकाश द्रव्य में ही कर लिया है। काल द्रव्य समस्त द्रव्यों के उत्पादादि रूप परिस। मन में सहकारी काल द्रश्य होता है। इसका लक्षण वर्तचा है। यह स्वयं परिवर्तन करते हुए प्रन्य प्रकों के परिवर्तन में सहकारी होता है और समस्त लोकाकाश में घड़ी, घंटा, पन, दिन, रान प्रादि ध्यवहार में निमित्त होता है । यह भी अन्य द्रव्यों के समान उत्पाद, व्यय और प्रौनग युक्त है, अमतिक है । 'प्रत्येक लोकाकाश के प्रवेश पर एक-एव कालाणु अप स्वतंत्र सत्ता बनाये हुए है । धर्म और अधर्म द्रव्य के समान यह लोक काश व्यापी प द्रव्य नहीं है, क्योंकि प्रत्येक प्रकाश प्रदेश पर एक एक कालाणु अवस्थित है। नाल द्रव्य के दो भेद हैं-नियचयकाल और व्यवहारकाल ।' (३) प्रानब तस्य कभीक आने वार को मायव महाजित प्रकार द्वार से हम गृह में प्रवेश करते हैं उसी प्रकार जिस मार्ग से प्रात्मा में कर्मों का आगमन होता है उसे प्राश्रय कहते हैं । योग के निमित्त से (मन, वचन, काम नात्मा में पुद्गली का प्रागमन होता है। इसके दो भेद हैं । भावाश्रव और द्रव्याधव । जिन भावों से कर्मों का प्राश्रय होता है उन्हें भावाश्रव और कर्म का जाना व्याश्रव कहलाता है। (४) दो पदार्थों के विशिष्ट सम्बन्ध को बन्ध वाहते हैं । मन्ध दो प्रकार का है--एक भाव बन्ध और दूसरा द्रव्य बन्ध । जिन राग द्वेप पीर मोह प्रादि विकारी भावों से कर्मों का बन्धन होता है, उन भावों को भायबन्ध कहते हैं और कर्मपुद्गलों का प्रारम-प्रदेशों से सम्बन्ध होना द्रश्य बैंच कहलाता है । प्रात्मा और कर्म के प्रदेशों का परस्पर मिलकर एक क्षेत्रावग्राह रूप होना बंधतत्व है। (५) संवरतरव जिन द्वारों से कर्मों का मानन होता था, उन द्वारों का निरोध करना संवरतत्व है । प्राश्रय योग से (मन, वचन, काय की चंचलता) होता है, प्रतः योग को रोकना ही संवरतत्व है। १. लोयायास पदेसे इक्वेषक जेठिया इक्वेक्का रयगाणं रासीमिव ते कालाए प्रसंख वग्यारिए । नेमिचन्द्र प्राचार्य : द्रव्यसंग्रह, गाथा संख्या २२ पृ. संख्या १६, हस्तिनापुर (मेरठ) प्रकाशन्न । पूज्यपाद प्राचार्य : सर्वार्थसिखि, प्र० प्र० सूत्र। पूज्यपाद प्राचार्य : सर्वार्थसिनि म० १, सूत्र १ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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