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________________ १३२ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व काव्य में प्रलंकार योजना का भी विशेष स्थान है । भावों की स्फुट अभि. व्यक्ति और वस्तु के उत्कर्ष एवं प्रांतीय मानचित्र या बिम्ध को अभिव्यजित करने के लिये प्रलंकार योजना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी प्रतीत होती है। यदि कल्पना भावों को जगाती है तो प्रसंकार उसे रूप प्रदान करता है । इसलिये प्राचीन प्राचा ने काव्य में प्रकार विधान की अनिवार्यता का निर्देश किया है। वास्तव में सीधी सादी बात में पाकर्षण कम दिखाई पड़ता है। अलंकार योजना में उसका चमत्कार बढ़ जाता है । इमीलिए काम्य में उसका महत्व है। मलंकारों को सीमा में नहीं बांधा जा सकता है । बात कहने के जितने ढंग होते हैं उसने ही अलंकार हो सकते हैं। प्रसंकारों में उपमा सबसे प्रधान प्रलंकार है मौर कदापित् प्रलंकारों के विकास के मूल में यही अलंकार रहा होगा । भारतीय साहित्य में ऐसा कोई काश्य न होगा जिसमें उपमा अलंकार का प्रयोग न हुआ हो । __मलंकार--विधान में कविवर बुधजन ना पांडित्य स्पष्ट रष्टि गोचर होता है । मलंकारों से तथा छन्दों की विविधता से समूचा काध भरा पड़ा है। उन्होंने तीनों ही प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है। शम्दालंकारों में कविवर बुवजन ने छेकानुप्रास, वृस्यनुप्रास, बीसा, लाटानुप्रास प्रादि का एवं अर्थालंकारों में उपमा, दृष्टान्त, अर्थान्तरन्यास, रूपक, यथासंस्प, उल्लेख, तुल्योगिता प्रादि का एक उभयालंकार में संसृष्टि का प्रयोग दष्टिगत होता है। इनके अतिरिक्त भी उनकी रचनामों में अन्य अनेकों अलंकारों के सुन्दर प्रयोग पाये जाते हैं। इतने मधिक अलंकारों का प्रयोग होने पर भी उनके काव्य में रसात्मकता की कमी नहीं । कवि की यह प्राश्चर्य-जनक सफलता उनकी प्रौढ़ एवं प्रसाधारण कला-कुशलता की परिचायक है । 'बुधजन', काव्य के स्वाभाधिक स्वरूप के विकसित करने में विश्वास करते थे 1 काव्य को बाध उपकरणों द्वारा चमस्कृत करना कदाचित् वे अनावश्यक समझते थे । 'बुधजन', के भाग्य में नलकारों के प्रयोग देखिये :-- बालंकार गिरिगिरि प्रति मानिफ नहीं धन वन चंदन नाहि ।। वीप्सा सुधरसभा में यों लस, जैसे राजत भूप ।। छेकानुप्रास घनसम कुलसम घरमसम समवय मीत बनाय || लाटानुप्रास १. बुधजन सतसई : पृष्ठ २८ २६४ । २. बुधजन सतसई : पृष्ठ ३१ । २९ । ३. अधजन सतसई : पृष्ठ ४७ । ४४२ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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