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________________ तृतीय अध्याय (भाषा वैज्ञानिक अध्ययन) १. भाषा शिल्पसम्बन्धी विश्लेषण कविवर बुधजन ने जिस भाषा का प्रयोग अपनी रचनामों में किया है, उसके सम्बन्ध में गंभीरता से विचार करने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि उनकी मौलिक तथा अनुदित रचनानों की भाषा में--न्यूनाधिक प्रन्तर प्रयश्य रहा है । अतः यह कहा जा सकता है कि उनकी भाषा के दो रूम रहे हैं। कविवर बुधजन ने संस्कृत, प्राकृत भाषाओं में लिखे ग्रन्थों का देशी भाषा में रूपान्तरण किया। उन्होंने अनेक दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक ग्रन्थों का हिन्दी में मूल-स्पर्शी अनुवाद किया । अनुवाद में मौलिकता को पूर्ण सुरक्षा है । उन्होंने देशी भापा में दार्शनिक विचारों का प्रतिपादन कर जन-जन तक प्रध्यात्म धारा प्रवाहित करने का महान कार्य किया। प्राचीन काल में मगधी और प्रमागधी भाषा में अन्य लिखे जाते थे । कालान्तर में जब उस भाषा में समझना कठिन हो गया, तब संस्कृत में शास्त्र रचना होने लगी। और जब संस्कृत भाषा व्याकरण के नियमों से अत्यधिक जकड़ दी गयी, तब उसमें भी समझना कठिन हो गया और तभी देशी भाषाओं में रचनाएं होने लगीं । जन-साधारण को समझाने के निमित्त ही ऐसी रचनामों का प्रणयन हुआ। कहा भी है-इस निकृष्ट समयविर्षे हम सारिख मंद बुद्धीन से भी हीन बुद्धि के घनी घनेजन प्रमलोकिये हैं । तिनको तिन पदनि का अर्थ ज्ञान होने के प्रथिधर्मानुराग के वशतें देश भाषामय ग्रन्थ करने की हमारे इच्छा भई, ताकारी हम' यह ग्रन्थ बनावें हैं । सौ इन विष भी अर्थ सहित तिन ही पनि का प्रकाशन ही है । इतना तो विशेष है जैसे प्राकृत, संस्कृत पद लिखिये है, परन्तु मर्थ विर्षे व्यभिचार किल्लू नाहीं । जैनाचार्यों एवं विद्वानों ने प्राकृत के समान ही संस्कृत, अपन्नश एवं हिन्दी प्रादि विभिन्न भाषाओं में समान रूप से अपने विचारों की अभिव्यंजना कर थाङमय की वृद्धि की है। कविवर बुधजन ने भी उक्त पद्धति का अनुसरण कर छाङ्गमय की वृद्धि की। १. पं० टोरमल : मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ. संस्था-२६, अनन्त कीति अन्धमाला,
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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