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________________ (xv) बुधजन सतसई, योगसार भाषा, पंचास्तिकाय भाषा एवं ढेर सारे पद हैं जिनमें कषि ने अपनी प्रास्मा ओल कर रख दी है। हमने अभी तक बुधजन के महत्व को स्वीकारा ही नहीं। अत्यधिक सरल हृदय काव थे। अपना मन्तरात्मा की भावान पर उन्होंने जो कुछ लिखा है वह ऊंचाइयों को छूने वाला है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में शोधकर्ता ने उनकी तुलना कबीर, तुलसी, मृद एवं सूरदास से की है वह एक दम तथ्यपूर्ण है। बुधजन १६ वीं शताब्दि के प्रतिनिधि कवि थे। गद्य एवं पत्र दोनों पर उनका समान अधिकार था । डा. शास्त्री ने उनकी जितनी रचनाओं के नाम गिनाये हैं यदि राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की गहन खोज की जावे तो इनमें और भी नाम जुड़ सकते हैं । कवि ने विलास, बावनी, छत्तीसी, पल्पीसी, शतक संशक रचनायें लिखी और अपनी प्राध्य प्रतिभा का परिचय दिया। वे एवं उनकी कृतियां इतनी अधिक लोकप्रियता प्रारत करने में सफल हुई है कि रपना समाप्ति के कुछ समय (श्चात् ही उनकी प्रतियां अन्य शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत की जाने लगी । छहढाला की प्रति अपने निर्माण काल के कुछ ही महिनों पश्चात् तो टोडारायसिंह जैसे दुर नगर में पहुंच गयी । इसी तरह बुधजन विलास अंसी बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण कृति भी अपने निर्माण काल के कुछ ही महिनों में तो भरतपुर, कामां एवं अन्य नगरों में प्रतिलिपि की जाकर पढ़ी जाने लगी। इस प्रकार १५० वर्ष पूर्व समाज में नयी. नमी कृतियों को पढ़ने की कितनी इच्छा रहती थी यह इन घटनाओं से जाना जा सकता है। डा० मूलचन्द जी ने कवि की कृतियों का भाषा, भाव एवं शिल्प की रष्टि से गम्भीर अध्ययन प्रस्तुत किया है । इसके लिये शास्त्री जी बधाई के पात्र हैं । वास्तव में जैन कवियों की अधिकांश कृतियां काव्यगत सभी गुणों से प्रास्तावित रहती हैं । उन में वे सभी गुण विद्यमान रहते हैं जो किसी भी अच्छी कृति में होने चाहिये । अकादमी द्वारा प्रकाशित पिछले पाठ पुष्पों में जितनी कृतियां प्रस्तुत की गयी हैं वे सभी साहित्यिक इष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं | कविवर बुधजन भी इस पक्ष में खरे उतरे है। राजस्थान विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के रीडर डा० शाम्भूसिंह जी भनोहर ने प्रस्तुत पुस्तक पर अपने दो शब्द लिखे हैं इसके लिये हम उनके पूर्ण आभारी हैं । डा. मनोहर बहुत ही खोजी विज्ञान हैं तथा जैन साहित्य के योगदान की सबब प्रशंसा करते हैं। श्री नानगरामजी जैन जोही जयपुर ने जो अकादमी के सह संरक्षक हैं, दो शब्द लिखने की कृपा की है हम उनके भी पूर्ण माभारी हैं।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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