SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( xiv) अन्त में जयपुर आकर रहने लगे थे। उनके पिता का नाम निहालचन्द था । वे सोभावन्द के पौत्र एवं पूरणमल के पुत्र थे। उन्हीं के वंश में होने वाले प्रोफेसर नवीन कुमार जी बज ने जो अपनी वंशावली दी है वह पूरी की पूरी अलग से दे दी गयी है। कमि का जन्म, लालन पालन, शिक्षा दीक्षा, प्रादि के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता । प्राज भी जैसे हम हमारे इतिहास को कोई महत्व नहीं देते वसे उस युग में हमारे पूर्वजों की यही भावना रही होगी। कवि ने अपनी प्रथम कृति संवत् १८३५ में निबद्ध की थी । डा. शास्त्री ने कवि का समय संवत् १८२० से १८९५ तक का माना है । इसलिये जब वे १५ वर्ष के थे तभी उन्होंने लिखना प्रारम्भ कर दिया जो उनकी प्रखर बुद्धि का परिचायक है । कवि ६० वर्ष तक प्रर्थात् जीवन के अन्तिम क्षण तक जिनवाणी की सेवा में लगे रहे और एक के पश्चात् दुसरे ग्रंथ का निर्माण करते रहे । वे स्वयं संगीतज्ञ थे इसलिये उन्होंने संकडों पदों की रचना की थी। दूषजन राज्य सेवा में थे प्रथवा व्यापार मादि करते रहे इसका भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन उस समय भी जयपुर के अधिकांश जैन बन्धु राज्य सेवा में रहते थे इसलिये कवि भी किसी न किसी पद पर कार्य करते होंगे । तत्कालीन दीवान अमरचन्दजी का उनसे विशेष स्नेह था इसलिये यह भी संभव है कि कवि दीयान प्रमरचन्द जी के यहां कार्य करते होंगे। पंचास्तिकाय भाषा में उन्होंने दीवान अमर चन्द का निम्न प्रकार उल्लेख किया है संगही अमर बन्द दीवान, मोकू नहीं दयावर आन । पंचास्तिकाय की भाषा रयो, तो अघ हरो धर्म विस्तरो ॥१७॥ कवि ने अपने जीवन काल में पांच राजापों का राज्य देखा था। वे उस समय पैदा हुये थे जब जयपुर जैन समाज एक मोर राज्य के भय से आतंकित था। शैव एवं जैनों के झगड़े, मन्दिरों की लूटपाट प्रायः प्राम बात थी। दूसरी पोर तेरहपथ बीस पंथ के झगहों ने समाज को दो भागों में विभक्त कर दिया था । समाज में एक ओर महापंडित टोडरमल जसे तेरहपंथी विद्वान थे तो दूसरी पोर सुरेन्द्र क्रीति भट्टारक एवं उनके समर्थक पं. बस्तराम शाह जैसे बीसपंथ का प्रचार कर रहे थे । लेकिन जब वे वयस्क हुये होंगे तब सभी प्रोर शान्ती थी। प्रशान्त वातावरण से उन्हें जुझना नहीं पड़ा । स्वयं कवि तेरहपंथी थे लेकिन उन्होंने अपनी कृतियों में किसी पंथ का समर्थन नहीं किया क्योंकि वे दोनों ही समाजों में लोकप्रिय थे। बुधजन साहित्यिक प्रतिभा के धनी थे । काव्य रचना उनके स्वभाव में समा गया था ।एक पोर वे भक्त कवि के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करते हैं तो दूसरी मोर प्रारमा की अघी उड़ान भरते हैं। उनकी प्रमुख रचनाश्नों में छहढाला,
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy