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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पाठवें नंदीश्वर द्वीप में अभिम जिन मंदिर तथा प्रकृत्रिम जिन प्रतिमाए है। "मानुषोत्तर पर्वत के बाहर जो जिन मंदिर है वहां की प्रतिमानों के दर्शन देवगण ही कर सकते हैं तथा मानुषोत्तर पर्वत के अन्दर प्रर्थात् ढाई द्वीप में जो प्रकृत्रिम जिन मंदिरों में प्रकृत्रिम जिन प्रतिमा है उनके दर्शन देव तथा विद्याधर कर पकते हैं। ढाई ही के हर नि गोदीव नहीं पहुँच सकते, केवल ऋद्धिधारी ही पहुंच सकते हैं । यह समस्त रचना अनादि अनिघन है। यहां कभी कोई परिवर्तन नहीं होता।
ऊर्ध्वलोक मेरू से ऊर्ध्वलोक के अन्त तक के शव को ऊधलोक कहते हैं । इस ऊर्वलोक के दो भेद हैं, एक कल्प और दूसरा कल्पालील । जहां इन्द्रादिक की ?
__ अधोलोब के ऊपर एक राजू लम्बा एक राजू चौड़ा और एक लारन चालीस योजन ऊचा मध्यलोक है । इस मामलोक के बिल्कुल बीच में गोलाकार एक लक्ष योजन व्यास बाला जम्बूद्धीप बरे खाई की भांति धेरै हुए गोलाकार लवण समुद्र है । इस लवण समुद्र की चौड़ाई सर्वन दो लक्ष योजन है । पुनः लचरण समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए गोलाकार घातको खंर द्वीप है जिसकी चौड़ाई सर्वत्र चार लक्ष योजन है। धातकी खंड को चारों तरफ से घेरे हुए प्रा3 लक्ष योजन चौड़ा कालोदधि समूद्र है तथा कालोदधि समुद्र को चारों तरफ से घेरे हुए सोलह लक्ष वोजन चौड़ा पुष्कर द्वीप है । इस ही प्रकार से दूने दूने विस्तार को लिए परस्पर एक दूसरे को घेरे हुए असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। अंत में स्वयंभू रमण समुद्र है। चारों कोनों में पृथ्वी है। पुष्कर द्वीप के बीचों बीम मानुषोतर पर्वत है जिससे पुष्कर द्वीप के दो भाग हो गये हैं। जम्बू द्वीप पातकी खंड द्वीप पुष्कराचं द्वीप इस प्रकार ढाई द्वीप में मनुष्य रहते हैं । ढाई द्वीप से बाहर मनुष्य नहीं है तथा तिथंच समस्त मध्यलोक में निवास करते हैं। स्थावर जीव समस्त लोक में भरे हुए हैं । जलचर जीव लवणोदधि, कालोदधि और स्वयंभू रमण इन तीन समुद्रों में ही होते हैं अन्य समुद्रों में नहीं ।
जम्बूद्वीप एक लक्ष योजन चौड़ा गोलाकार है । इस जम्बूद्वीप में पूर्व और पश्चिम दिशा में लम्बायमान दोनों तरफ पूर्व और पश्चिम समुद्र को स्पर्श करते हुए हिमवन, महाहिमवन निषघ, नील कक्मि और शिखरी इस प्रकार यह कुलाचल (पर्वत) हैं । इन कुलाचलों के कारण सात भाग हो गये हैं । दक्षिण दिशा के प्रथम
भानुषोत्र बाहर जिनकाम, तहाँ देव ही करें प्रणाम ।
हाईद्वीप भीतर जिनगेह, सुर विद्यावर पदे तेह ॥ अधजन: तत्वार्थ बोध, पद्य संख्या ४५-४६, पृष्ठ संख्या ४६ लश्कर ।